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अनुयोगचन्द्रिका टीका.सू० ४५ स्कन्धाधिकारनिरूपणम्
इत्यं श्रुताधिकारमुक्त्वा सम् ति-'खधं निक्खिविस्मामि' इति कथनानुसारेण स्कन्धाधिकार उच्यते
मूलम्--से किं तं खंधे ? खंधे चउविहे पण्णत्ते, त जहानामखंघे ठवणाखंधे दव्वखंधे भावखंधे ॥ सू० ४५ ॥
छाया-अथ कोऽसौ स्कन्धः ? स्कन्धश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-नामस्कन्धः, स्थापनास्कन्धः द्रव्यस्कन्धः, भावस्कन्धः ॥ सु० ४५ ॥
टीका-से किं त' इत्यादि-- अस्य व्याख्या स्पष्टा, नवरं-कन्धःपरमाण्वादि समुदायः ॥४५॥
चाहिये । (से तं सुर्य) इस तरह इन श्रुतादि नामों से यह श्रुत कहा गया है।सूत्र४४॥
अब सूत्रकार (खंधं निक्खिविस्सामि) इस कथन के अनुसार सन्धाधिकार प्रारंभ करते हैं
शब्दार्थः-(से किं तं ख धे) हे भदन्त ! स्कंधका क्या स्वरूप है ? (खधेचउविहे पण्णते)
उत्तरः-कंधका स्वरूप प्रकट करने के लिये उस के चार प्रकार प्रज्ञप्त हुए हैं-(तं जहा) वे इस तरह से हैं-(नामख धे) नाम स्कंध (ठवणा खधे) ग्थापना स्कंध (दव्वस्कंधे) द्रव्यस्कंध (भावख धे) और भावस्क ध। स्कंध शब्द का अर्थ है पुद्गल परमाणुओं का सश्लेष । इसकी व्याख्या पहिले की गई व्याख्या की तरह ही जाननी चाहिये।
पर्यायवाची शहा, सेभ समा नये. (से तं सु) 240 प्र॥२ मही શ્રતનું નિરૂપણ સમાપ્ત થાય છે. જે સૂટ ૪૪
वे सत्र 'खंध निविखविस्सामि' मा थन अनुसार २४-याधिकारना प्रारक घरे -'से किं तं खधे" त्याह
शा-(से किं खंधे १) शिष्य गुरुने सेवा प्रश्न पूछे छे भगवन! २४.नु उ २१३५ डाय छ ?
उत्तर-खंधे चउविहे पण्णत्ते) २४.धना २१३५नु नि३५५ ४२वा निमित्त तेना या२ ४.२ ४. (तंजहा) ते प्रा। नीचे प्रमाणे छ-(नामख धे, ठवणाखंधे, दन्वखधे, भावखंधे) (१) नाभ२४-५, (२) स्थापना२४.५, (3) द्र०५२४.५ અને (૪) ભાવધ ઔધ શબ્દનો અર્થ “પુદ્ગલ પરમાણુઓના સંશ્લેષ” સમજ આ સૂત્રની વ્યાખ્યા આગળ કહેલી વ્યાખ્યા પ્રમાણે સમજવી.