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अनुयोगदारले केण्डजमुदते । इहाप्यादि शब्दः प्रकारवाची । फलस्य श्फारो भेदः कसि इति बोधयितुमादि शब्दः प्रयुक्त इति । अत्रापि काणे कार्याचाराव कर्पास पोइजमिति सामानाधिकरण्यम ।
अथ तृतीय भेदमाह-'फीडयं पंचषिहं पण्णसं' इति । कीटज पम्पवित्र प्रज्ञप्तम्-कीटज-कीटात् चतुरिन्दिर जीवविशेषाज्जातं धनं पञ्चपकारक प्रसं-प्रकपितम् । पञ्चप्रकारस्वमेय स्पष्टयति-त जहा' इत्यादि । सघथा-पई-पसत्रम, पदृसत्रोत सिविषये एवं वृद्धसम्प्रदाय:-अरण्ये निकुञ्जमध्ये मांसपीडादिरूपामिपपुजाः स्थाप्यन्ते । तेषां पुजानां पावतो निम्ना उन्नताच सान्तरा पहनः है। इस कपास के बने हुए सूत्र को बोण्डज कहा जाता है। यहां आदि शब्द प्रकावाची है। कपास से फलका भेद है। यह भेद पास है। इस बातको समझाने के लिये यहाँ आदि शब्द प्रयुक्त हुआ है । यहां भी कारण में कार्य के उपचार से वोप्डज मूत्र को कपास वह दिया है। इसलिये समानाधिकरणता बनने में कोई दोप नहीं है। (कीडयं पंचविहं पण्णत) कीटज़ मन्त्र पांच प्रकारका कहा गया हैं। चौइन्द्रिय जीव विशेष का नाम कीट है। उस से उत्पन्न जो मूत्र होता है वह पांच प्रकार का होता है। (जहा) जैसे-“पट्टे मलए अंसुए पीणसुए किमिरागे' पट्ट, मलय, अंशुक चीनांशुक और कृमिराग । पट्ट से यहां मह सत्र लिया गया है। इस पत्र की उत्पत्ति के विषय में वृद्ध परम्परा से ऐसी बात सुनने में आती है-जंगल में एक निकुंज लतापिहित प्रदेश होता है । इस में मांसचीडादि रूप अ.मिपपुंज रख दिये जाते हैंપ્રકારવાચક છે. કપાસ અને કાલા વચ્ચે ભેદ છે. કાલું એક પ્રકારના ફલ રૂપ છે જ્યારે કપાસ તેમાંથી નીકળતી વસ્તુરૂપ છે. આ વાતને સમજાવવાને માટે અહીં આદિ શબ્દ વપરાય છે. અહીં પણ કહેવામાં આવેલ છે. તેથી સમાનાધિકરણતા ઘટિત થવામાં કઈ દોષ રહેતું નથી.
(कीडयं पंचविहं पण्णत्त) 312 सूत्र पांय प्रारना i . तुन्द्रय જીવવિશેષ (રેશમના કીડા આદિ છે)ને કીટ (કીડે કહે છે. તેની લાળ આદિ भांची मने रे सूत्र डाय छे तेन 120 सूत्र डे छ (तंजहा) 12. सूत्रना viय । नीय प्रभा छ (पट्टे, मलए, अंसुए, चीणंसुए, किमिरागे)- (१) पर (२) मध्य, (3) अशु, (४) यानांशु भने (५) भिसा
'पट्ट' मा ५४थी मडी पट्टसत्र अडर थयुं छ. मा पट्ट सुनी उत्पत्तिना વિષયમાં વૃદ્ધ પરમ્પરાની અપેક્ષાએ આ પ્રકારની વાત પ્રચલિત છે-જંગલમાં કંઈ એક નકુંજમાં (વૃક્ષ અને લતાઓના સમૂહથી યુકત સ્થાનને નિકુંજ કહે છે)
किमिरागेय है। (तजहा से उत्पन्न जो सब होचोटि