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अनुयोगद्वारसत्रे
पत्रकादिलिखितग्य तस्य उपयोगरहितत्वात् द्रव्यत्वं बोध्यम् । आगमो हि ज्ञानं, तस्य कारणम् - आत्मा - देहः शब्दश्चैतत्त्रयं त भाषाम् तस्य मोआगम विज्ञेयम् अपि च- पत्रकपुस्तक लिखितस्य अचेतनत्वाद् ज्ञानरूपत् भाषाध्व नो भागम स्वम् । इह 'सुय' इत्यस्यार्षत्वात् सूत्रमिति छायापक्षे प्राह- 'हवा' इत्यादि । अथवा ज्ञायव शरीरभः यशरीरव्यतिरिक्त द्र० सूत्र पञ्चविधं प्रज्ञप्तम् । तद्यथाअण्डजम् ?, बोण्डजम२, कीटजम्३, बालजम्४, बाल्कल५५,
तत्र पञ्चविधद्रव्यसूत्रमध्ये प्रथमं भेदं प्ररूपयति- 'अंडयं हंसगब्भादि' इति । अण्डज हरु गर्भादि, इह हंसशब्देन चतुरिन्द्रियो जीवविशेषो गृह्यते, तस्य से व्यतिरिक्त द्रव्य है । पत्रक आदि पर लिखे हुए श्रुत में उपयोग से रहित होने के कारण द्रव्यत्व है । आगम नाम ज्ञान का है । इस के कारण
त्मा, देह और शब्द कारणभूत होते हैं। इनका अभाव होने पर उसमे नोआगमता है । अपि च-पत्रक पुस्तक आदि में लिखित श्रुतं में अचेतनता होने के कारण ज्ञानरूपता का अभाव है इसलिये भी उसमें नोआगमता है । तथा जब "सुय" पद की छाया 'सूत्र' ऐसी होती है तब उस पक्ष में क्या इस का अर्थ होता है इसे ( जाण सरीरभविय सरीरखइरित्तं दव्वसुयं पंचविहं पण ) वे कहते हैं कि ज्ञायक शरीर और भगशरीर इन से भिन्न जो द्रव्यमुत्र है वह पांच प्रकार का है - ( त जहा ) वे प्रकार ये है ( अंडयं, १ वौंडय २, कीडयं ३, बालयं ४, वागय ५) अण्डज बोण्डज, कीटज, अलज और बाल्कल । (तत्थ) इन में (अण्डय) अंडज का तापय इस प्रकार से हैं ( हंस શ્રુત કહે છે.” કાગળ આદિ પર લખાયેલા શ્રુતમાં ઉપયેગથી રહિતતા હોવાને કારણે દ્રવ્ય છે. જ્ઞાનને આગમ કહે છે તે આગમરૂપ જ્ઞાનમાં આત્મા, દેહ અને શબ્દ કારણભૂત બને છે. તેમને જયાં અભાવ હાય ત્યાં આગમતાના સદ્દભાવ હાતા નથી પશુ નામગમતાના સદ્ભાવ રહે છે. તાડપત્ર પુસ્તક આદિમાં લખેલા શ્રુતમાં અચેતનતા હેાવાથી જ્ઞાનરૂપતાને અભાવ હોય છે, તે કારણે તે તમાં આગમતા રહેલી છે.
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क्यारे "सुयं" या पहनी संस्कृत छाया “मुत्र' 'सूत्र' थाय छे, त्यारे तेने थे। अर्थ थाय छे ते हवे सूत्रार अ८ रे छे- ( जाणयसरीरभ वियसरीरहरितं दव्वसुर्य पंचविहं पष्णस) तेथे हे छे है ज्ञायम्शरीर द्रव्यश्रुत भने लवियशरीर द्रव्यश्रुतशी भिन्न येवु ने द्रव्यसूत्र ('दव्वसुय' ) नी संस्कृत छाया " - सूत्र " ने आधारे या यह मन्युं छे छे ते पथि प्रहार धुंछे- (तंजही) प्राश नीचे प्रभा छ - ( अंडयं बांडयं कीडयं वागयं) (१) मंडल, (२) मांडन, (3) डीटर, (४) आसन भने (4) वास ( तत्थ अण्डयं हंसगभादि)