________________ श्रीजेसलमेरुदुर्गस्थ [ क्र. 257 7 // संवत् 1343 आषाढ शुदि 1 साधुवरदेवसुत दिखलयविख्यातकीतिकौमुदीविनिर्जित आमचंद्र साधुहेमचंद्रभ्रात्रा विशदगुणरत्नरोहणेन सा०महणश्रावकेण श्रीमनिसुव्रतनाथचरित्रादिपुस्तकसप्तकं माल्येन गृहीत्वा श्रीजिनचंद्रसूरिसुगुरुभ्यो व्याख्यानाय प्रदत्तं ॥छ।। विप्रकीर्णपत्रगता प्रशस्तिः पूर्व चन्द्रकुले विशालविलसद्व्यालिपद्माकरोल्लासे भानुनिभो बभूव यतिपः श्रीवर्द्धमानाभिधः // श्रीजिनेश्वरसूरिश्रीबुद्धिसागरसूरिसुविहितवेद्याः। प्रभो.......... पंचाशकानिश्रीपार्श्व......... ........श्रीदंडछत्रापल्लीयता // भारत्याः कति नाम नामलधियः पुत्राः पवित्राः परं श्रीदेवप्रभसूरिणैव हृदयं तस्याः समावर्जितम् / वक्तत्वं कविता विवेचनमिति स्वं सारमस्मे स्वयं देव्या येन वितीयते स्म जननादारभ्य सं......॥ रूपं क्वापि मनोहरं क्वचिदपि..................सकला क्वचित् क्वचिदपि प्रौढार्थकाव्यक्रिया / चातुर्य वचसा क्वचित् परमहो येष्वेव सर्वे गुणा अन्योन्य विरहासहा इह स सर्वात्मनाऽपि स्थिताः // संसारार्णवपातभीतभविनां रक्षाबतं बिभ्रत सिद्धान्तांबुधिपारगां यतिजने कल्पद्रकल्पां कलौ / महं. मुंजालदेवाख्यः श्रद्धासंबंधबन्धुरः। मातु:श्रेयोविधानाय व्याख्यापयति पुस्तकम् / / [अपूर्णा ] क्रमाङ्क 257 मुनिसुव्रतस्वामिचरित्र पद्य पर्वत्रयात्मक पत्र. 191 / भा. सं.। क. पद्मप्रभसूरि। पं. 5568 / र. सं. 1294 / ले. सं. अनु. 14 मी शताब्दी पूर्वार्द्ध / संह. श्रेष्ठ / द. श्रेष्ठ। लं. प. 3142 // / पत्र १९०मां द्विभुजा सरस्वतीदेवीनुं उभी मुद्रामा चित्र छे। पत्र 191 मां मुनिसुव्रतस्वामिनी अधिष्ठात्री वैरोव्यादेवीन चित्र छ / क्रमाङ्क 258 मुनिसुव्रतस्वामिचरित्र पद्य पर्वत्रयात्मक पत्र 221 / भा. सं.। क. पद्मप्रभसूरि / ग्रं. 5568 / र. सं. 1294 / ले. सं. 14 मी शताब्दी / संह. जीर्णप्राय / द. श्रेष्ठ / लं. प. 31 // 42 // पत्र 1-6. 90-221 प्राचीन पत्र खोवाइ जवाथी लगभग ते ज समयमा कागळ उपर लखावीने मूकेला छ। प्रति शुद्ध छ / क्रमाङ्क 259 नेमिनाहचरिउ पत्र 304 / भा. अप.। क. बृहद्गच्छीय हरिभद्रसूरि। ग्रं. 8032 / र. सं. 1216 / ले. सं. अनु. 13 मी शताब्दी उत्तरार्द्ध / संह. श्रेष्ठ / द. श्रेष्ठ / लं. प. 29 // 42 / / पत्र 304 मां शोभन छ। पहु अणंतरु हुयउ पासु पासाउ वि वीरजिणु, इंद्रभूह अह तह सुहम्मु वि। ता जंबूसामि अह पहनु तयणु गुरुगणु असंखु वि / अह कोडियगणि चंदकुलि, विउल वइरसाहाए / अइगच्छंतिहि अणुकमिण, बहुगणहरमालाए। हुयउ ससहरहारनीहारकुंदुज्जलजसपसरभरियभुवण घडगच्छमंडणु। * इसमें 'श्रीदण्डछत्रपल्लीयता... श्रीदेवप्रभसूरि णैन' इस प्रकार का उल्लेख है जो छत्रपल्लीय गच्छ को ही सूचित करता है। ऐसा लगता है। - संपादक / इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /073 )