________________ अभयदेवसूरिजी एवं खरतरगच्छ में मान्यता भेद!!! खरतरगच्छ की परंपरा अभयदेवसूरिजी की संतानीय नहीं है, ऐसा इसलिए भी मानना उचित लगता है क्योंकि खरतरगच्छ की कई मान्यताएँ अभयदेवसूरिजी का अनुसरण नहीं करती हैं, जैसे कि 1. हरिभद्रसूरिजी ने पंचाशक (यात्रा पंचाशक) ग्रंथ में भगवान महावीर के पांच कल्याणक बताये हैं और अभयदेवसूरिजी ने भी उसकी टीका में भगवान् महावीर के गर्भ, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान एवं निर्वाण पाँच कल्याणक हुए ऐसा लिखा है। जबकि खरतरगच्छ की परंपरा में षट् कल्याणक की मान्यता है। ___ 2. अभयदेवसूरिजी ने श्री ज्ञाताधर्मकथा की टीका में द्रौपदी द्वारा जिन प्रतिमा पूजन के अधिकार का विस्तृत विवेचन किया है, यानि कि स्त्रियाँ पूजा कर सकती हैं, ऐसा आगम के मूल सूत्र में है एवं अभयदेवसूरिजी भी इसको स्वीकारते थे। जबकि खरतरगच्छ की सामाचारी में स्त्री पूजा का निषेध है। ___ 3. अभयदेवसूरिजी ने स्थानाङ्ग सूत्र प्रथम स्थान एवं प्रश्नव्याकरण 10वें अध्ययन सू. 29 की टीका में साधु के उपकरणों में पल्ले को गिनाया है जबकि खरतरगच्छ के सामाचारी ग्रंथों में पल्ले रखने की आचरणा नहीं है ऐसा लिखा है। जिनवल्लभगणिजी के उल्लेखों से तथा खरतरगच्छ की परंपरा और अभयदेवसूरिजी में मान्यता-भेद के आधार से निर्णय कर सकते हैं कि खरतरगच्छ, अभयदेवसूरिजी की शिष्य-परंपरा के रूप में नहीं है। ___ यहाँ पर एक बात विशेष ध्यान में लेने जैसी है कि समयसुंदर गणिजी की 'सामाचारीशतक' में जिनवल्लभगणिजी और जिनदत्तसूरिजी की सामाचारी दी है, परंतु जिनेश्वरसूरिजी की और अभयदेवसूरिजी की सामाचारी नहीं दी है। जिनेश्वरसूरिजी ने 'चैत्यवंदन विवरण' में अपने गच्छ को चैत्यवंदन संबंधी भिन्न सामाचारी को सूचित किया है। अगर खरतरगच्छ उनकी शिष्य परंपरा में होता तो सामाचारी शतक में जिनेश्वरसूरिजी की उस भिन्न सामाचारी का भी निर्देश होता। परंतु ‘सामाचारीशतक' में उसका कोई विवरण नहीं मिलता है। ___ दूसरी बात जिनदत्तसूरिजी ने 'चर्चरी' आदि ग्रंथों में जिनवल्लभगणिजी की महती प्रशंसा की है और जिनवल्लभसूरिजी प्ररूपित सामाचारी और उपदेशों को ही * देखें पृ. 92 ( इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /064