________________ गए थे। जिनेश्वरसूरि चैत्यवासी होने से शिथिलाचारी थे, तब जिनवल्लभ वैहारिक श्रमण समुदाय के साथ रहने से स्वयं चैत्यवासी न बनकर वैहारिक रहना चाहते थे, इसीलिये अपने मूल गुरु से मिलकर वे वापस पाटण चले गए थे। ___ उनके दुबारा पाटण जाने तक श्री अभयदेवसूरिजी पाटण में थे या विहार करके चले गये थे, यह कहना कठिन है, फिर भी इतना कहा जा सकता है कि नवांगी वृत्तियों के समाप्त होने तक वे पाटण में अवश्य रहे होंगे, क्योंकि तत्कालीन पाटण के जैन श्रमण संघ के प्रमुख आचार्य श्री द्रोण के नेतृत्त्व में विद्वानों की समिति ने अभयदेव सूरि निर्मित सूत्रवृत्तियों का संशोधन किया था, आगमों की वृत्तियाँ विक्रम संवत् 1128 तक में बनकर पूरी हो चुकी थी, इसलिए इसके बाद श्री अभयदेवसूरिजी पाटण में अधिक नहीं रहे होंगे, 1128 के बाद में बनी हुई इनकी कोई कृति उपलब्ध नहीं होती, लगभग इसी अर्से में हरिभद्रसूरीय पंचाशक प्रकरण की टीका आपने 'धवलका' में बनाई है, इससे भी यही सूचित होता है, कि आचार्य श्री अभयदेवसूरिजी ने 1128 में ही पाटण छोड़ दिया था। इस समय वे बाद का इनका कोई ग्रंथ दृष्टिगोचर नहीं हुआ, इससे हमारा अनुमान है कि आचार्य श्री अभयदेव सूरिजी ने अपने जीवन के अन्तिम दशक में शारीरिक अस्वास्थ्य अथवा अन्य किसी प्रतिबन्धक कारण से साहित्य के क्षेत्र में कोई कार्य नहीं किया। आपका स्वर्गवास भी पाटण से दूर ‘कपडवंज' में हआ था, आपके स्वर्गवास का निश्चित वर्ष भी श्री अभयदेव सूरि के अनुयायी होने का दावा करने वालों को मालूम नहीं है, इस परिस्थिति में यही मानना चाहिये कि श्रीअभयदेवसूरिजी विक्रम संवत् 1128 के बाद गुजरात के मध्य प्रदेश में ही विचरे हैं। खरतरगच्छ के अर्वाचीन किसी किसी लेखक ने इनके स्वर्गवास का समय सं. 1151 लिखा है, तब किसी ने जिनवल्लभ गणी को सं. 1167 में अभयदेव सूरि के हाथ से सूरि-मंत्र प्रदान करने का लिखकर अपने अज्ञान का प्रदर्शन किया है। अभयदेव सूरिजी 1151 अथवा 1167 तक जीवित नहीं रहे थे, अनेक अन्य गच्छीय पट्टावलियों में इनका स्वर्गवास 1135 में और मतान्तर से 1139 में लिखा है, जो ठीक प्रतीत होता है, आचार्य जिनदत्त कृत 'गणधर-सार्धशतक' की वृत्तियों में श्री सुमति गणि तथा सर्वराज गणि ने भी अभयदेवसूरिजी के स्वर्गवास के समय की कुछ भी सूचना नहीं की, इसलिए 'बृहद् पौषध-शालिक' आदि गच्छों की पट्टावलियों में लिखा हुआ अभयदेव सूरिजी का निर्वाण समय ही सही मान लेना चाहिए। अभयदेवसूरि का स्वर्गवास मतान्तर के हिसाब से सं. 1139 में मान लें तो भी इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /058