________________ परिशिष्ट-6 रुद्रपल्लीय गच्छ खरतरगच्छ की शाखा नहीं है। महो. विनयसागरजी ने 'खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रह' के पुरोवाक् पृ. xxxi में खरतरगच्छ की शाखाओं आदि का उल्लेख इस प्रकार किया है “खरतरगच्छ की जो 10 शाखाएँ - मधुकर, रुद्रपल्लीय, लघु, पिप्पलक, आद्यपक्षीय, बेगड़, भावहर्षीय, आचार्य, जिनरंगसूरि और मंडोवरा शाखा एवं 4 उपशाखाओं - क्षेमकीर्ति, सागरचंद्रसूरि, जिनभद्रसूरि और कीर्तिरत्नसूरि के भी जो लेख प्राप्त होते हैं वे इसमें संकलित किये गए हैं।'' - इस उल्लेख में उन्होंने रुद्रपल्लीय गच्छ को भी खरतरगच्छ की शाखा गिनी है, वह उचित नहीं है, क्योंकि पृ. 19 पर बताये अनुसार-जैसे रुद्रपल्लीय गच्छ के ग्रंथों में चांद्रकुल से ही रुद्रपल्लीय गच्छ की उत्पत्ति बताई है, एवं रुद्रपल्लीय शब्द के साथ कहीं पर भी खरतर शब्द का प्रयोग अपने गच्छ के संबोधन हेतु नहीं किया है। इसी तरह ‘खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रह में रुद्रपल्लीय गच्छ के करीबन 4050 लेख दिये हैं, उनमें भी कहीं पर भीखरतर शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। इस परिशिष्ट में खरतरगच्छ की विभिन्न शाखाओं के लेख दिये हैं, उनमें 'खरतर' शब्द का प्रयोग साथ में किया हुआ मिलता है। केवल मधुकर गच्छ के लेखों मे कही पर मधुकरगच्छे, कहीं पर खरतरमहकर इस प्रकार वैकल्पिक प्रयोग मिलता है। अगर रूद्रपल्लीयगच्छ खरतरगच्छ की शाखा होता तो उसमें भी खरतर शब्द का प्रयोग मिलता, परंतु वैसा नहीं है। __ अतः रुद्रपल्लीय गच्छ के ग्रंथों में दिये गये अपने गच्छ की उत्पत्ति के उल्लेख, प्रशस्तिओं एवं लेखों के संग्रह से सिद्ध होता है कि रुद्रपल्लीय गच्छ, खरतरगच्छ की शाखा नहीं है, परंतु जिनशेखरसूरिजी से निकला हुआ खरतरगच्छ (जो खरतरगच्छ की शाखाओं एवं रुद्रपल्लीय गच्छ के लेख यहाँ पर दिये जा रहे हैं, जिनके अवलोकन से उपरोक्त बात स्पष्ट समझ में आ जाएगी। 1. लघुखरतरगच्छ का लेख (1028) शीतलनाथ-पञ्चतीर्थीः सं. 1567 वर्षे माघ सु. 5 दिने श्रीमालज्ञातीय धांधीया गोत्रे सा. दोदा इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /140