________________ देखकर ही उन्हें खरतर बिरुद प्रदान किया खरतर' सम्बोधन से सम्बोधित किया गया।" ___ समझ में नहीं आता है कि, जब पूरे ग्रंथ में वाद का वर्णन मिलता है परंतु राजा ने खरतर बिरुद दिया हो अथवा 'अहो! खरतरा यूयं' इस प्रकार संबोधन किया हो, ऐसा एक बार भी ‘खरतर' शब्द का प्रयोग उसमें नहीं मिलता है, तो उस ग्रंथ का प्रमाण देकर खरतर बिरुद की सिद्धि कैसे कर सकते हैं? राजा ने जो-जो वाक्य उच्चरे, उनको पीछे के पृ. 110 से 112 मूल संदर्भ ग्रंथ में Underline किये हैं तथा सुगमता हेतु संकलित करके यहाँ पर दिये है। इसके अवलोकन से पाठक स्वयं निर्णय कर सकते हैं कि 'गुर्वावली' (सं. 1305) तक खरतर बिरुद की कोई बात नहीं मिलती है। 1. राज्ञाऽभाणि-'यद्यत्रैवंविधाः क्षुद्रा आयाताः, तर्हि तेषामाश्रयः केन ____ दत्तः?... ततो राज्ञोक्तमाकारय तम्। 2. आकारित पुरोहितः, भणितश्च-'यद्येवंविधा एते किमिति स्थानं दत्तम् ? 3. ततः पूज्यैः प्रत्यक्षैभवितव्यं विचारप्रस्तावे प्रसादं कृत्वा। ततो ___ राज्ञाऽभाणि-युक्तमेव कर्तव्यमस्माभिः। 4. राज्ञोक्तम्-'पुरोहित! आत्मसम्मतानाकारय'। 5. ततो राज्ञा भणितम्-‘अस्माकं देशे पूर्वजवर्णिता राजनीतिः प्रवर्तते नाऽन्या। ततो जिनेश्वरसूरिभिरूक्तम्- ‘महाराज ! अस्माकं मतेऽपि यद् गणधरैश्चतुर्दशपूर्वधरैश्च यो दर्शितो मार्गः स एव प्रमाणीकर्तुं युज्यते, नाऽन्यः। ततो राज्ञोक्त युक्तमेव। 6. ततो राज्ञोक्तास्ते-‘युक्तं वदन्त्येते, स्वपुरुषान् प्रेषयामि, यूयं पुस्तक समर्पणे निरोपं ददध्वम्। 7. राज्ञा भावितं युक्तमुक्तम्। 8. या नाठिः (?) सा कस्य सम्बन्धिनी भवति ? राज्ञोक्तं मदीया 9. ततो राजा भणति-सर्वेषां गुरुणां सप्त सप्त गब्दिका रत्नपटीनिर्मिताः / इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /114 )