________________ आचामाम्लैवर्धमान स्यादतिदुष्करं / य एतत्कुरुते सोऽते श्री चन्द्रवत्सुखी भवेत् / / इस अत्यंत दुष्कर आयंबिल वर्धमान तप को कोई विरला पुण्यशाली ही पूर्ण कर श्री 'श्री चन्द्र' के समान सर्वदा सुख का अनुभव करता है। इस अत्यन्त दीर्घ तप की सुन्दर आराधना चंदन ने की और तप के फलस्वरूप 'श्री चन्द' के भव में सर्वतोमुखी सुख सौभाग्य को प्राप्त किया वह दृष्टान्त इस प्रकार है: श्री जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र में पूर्वकाल में कुश स्थल नाम की एक सुन्दर एवं विशाल नगरी थी जहां पर 10 लाख नगरों के अधिपति प्रतापसिंह नाम के एक न्यायी राजा राज्य करते थे। उनके 500 रानियों में मुख्या जय श्री रानी से जय, विजय, अपराजय और जयंतक नामक चार पुत्र थे। राजा प्रतापसिंह के पास करोड़ सैनिक, 10 लाख अश्व, यशोधवल मुख्य 10 हजार हाथी, तथा इतने ही रथ, ऊंट, वाजिंत्र व चर पुरुष थे / मंत्रियों और सामन्तों से संयुक्त वह राजा प्रजा पर न्याय पूर्वक शासन करता था। एक दिन राजा गज्य सभा में बैठा था। उस समय व्यापार निमित्त देश विदेश घूमता हुआ वरदत्त नाम का एक सेठ वहां आया / राजा ने उसे पूछा कि "पाप किस नगर के रहने वाले हैं ? देश P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust