________________ 134 राजाओं और दूसरे राजारों के समक्ष श्रीचन्द्र का महान राज्याभिषेक विया / एक छत्री राज्य को करते हुये र जाधिराज बने महापट्टणी पद्मिनी चन्द्रकला बनी और सोलह पटरानिये 1 कनकावली 2 पद्मश्री 3 मदनसुन्दरी 4 प्रियंगमंजरी 5 रत्नचूला 6 रनवती 7 मणिचूला 8 तारालोचना | गृणवती 10 चन्द्रमुखी 11 चन्द्रलेखा 12 तिलकमंजरी 13 कनकवती 14 कनकसेना 15 सुलोचना 16 सरस्वती हुई। चन्द्रावली रत्नकान्ता, धनवती अदि रुप, लावण्य, सौभाग्य लक्ष्मी की स्थान भूत 160. •ानियें हुई / चतुग कोविदा आदि सखिये हजारों हुई / पूर्व पूण्य के भोग फल से विद्या से स्वइच्छानुसार रुप बनाकर श्रीचन्द्र राजाधिराज इच्छानुमार भोग भोगते थे / सुग्रीव को उत्तर दिशा कः राज्य सौंपा और दक्षिण श्रेणी का राज्य रत्नध्वज और मणिचूल को दिया / जय आदि चारों भाइयों को कई देशों का राज्य दिया / सब जमह वह धर्म राज्य को चलाने लगे। सोल हजार मंत्रियों में 1600 मुख्य मंत्री थे, लक्ष्मण आदि 16 अमात्य थे उन सब में मुख्य मंत्रीराज गुणचन्द्र था। 42 लाख हाथी, 02 लाख उत्तम अश्व, 42 लाख रथ, 42 लाख ऊट 42 लाख गाड़े, 10 करोड़ साधारण घोड़े, अड़तालीश करोड़ धनुर्धारी सैनिक, उत्तम सेनाधिपति धनजय सहित हमेशा श्रीचन्द्र राजाधिराज की सेवा करते थे। 42 हजार ऊचे ध्वज, 42 हजार बाजे और उतने ही उनके P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust