________________ *133* . भवन छोटा हो गया। सुहागिन स्त्रियों तथा कन्याओं ने श्रीचन्द्र महार राजा को मोती और अक्षत से वाया / कवि और भाट लोगों ने स्तुति शुरु की / सिंहासन पर बैठे हुये पिता के चरण कमलों के नजदीक श्रीचन्द्र अत्यन्त ही सुशोभित हो रहे थे। कुछ समय पश्चात द्वारंपाल द्वारा सूचना कराकर, कुडलपुर नरेश भेंटगगा रखकर, बन्दरी को बिठाकर सभा को प्राश्चर्य चकित कराता हुआ भक्ति से नमस्कार करके कहने लगा, मेरे द्वारा पूर्व में अज्ञानता वश जो अपराध हुप्रा है उसे क्षमा करें / प्रतापसिंह राजा ने पूछा यह कौन है ? तुमने क्या अपराध किया है ? नरे, ने हाथ जोड़ कर साग हाल कह सुनाया। प्रतापसिंह के कहने से वानरी की प्रांस में अंजन डालकर श्रीचन्द्र ने उसे फिर सरस्वती बनाया / लज्जा पूर्वक सास-ससुर को नमस्कार कर, चन्द्रकला आदि को नमस्कार कर, सखी सहित वहां रही मोहनी रत्नों और भीलों सहित वहां आयी। उसे श्रीचन्द्र ने अपने महल के द्वार के प्रागे स्थापन की / ब्राह्मणी शिवमती को नायक नगर अर्पण किया और बाद में चोर की गुफा में से सारा धन मंगवाया / विद्या के बल से विद्याधर राजापों के बल से, चतुरंगी सैन्य बल से और स्वबुद्धि बल से श्रीचन्द्र ने समुद्र तक तीन खण्ड की भूमि को जीता | सोलह हजार देशों के राजाओं ने श्रीचन्द्र को नमस्कार किया / हाथियों घोड़ों, रथों और सैनिकों सहित श्रीचन्द्र अर्धचक्री की तरह शोभने लगे प्रतापसिंह राजा ने एक शुभ दिन, शुभ समय में विद्याधर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust