________________ *121 पिता ने श्रीचन्द्र से पूछा तुम वहां किस तरह और कव गये थे? श्रीचन्द्र वृक्ष पर चढ़कर जिस तरह वहां गये और कुशस्थल आये थे सारा वृतान्त कह सुनाया। राजा मोर सब लोग बहुत ही विस्मित हुये / राजा ने नगर में श्रेष्ठ प्रवेश महोत्सव कराया और तुष्टमान होकर कहने लगे मुझे जो अवधूत के उपकार को न करने का अफसोस या वह दूर हुा / तुम्हारी उपकार परायणा भी कमाल की है तेरे गुणों से उपार्जित किये हुने ये सारे राज्य तू स्वीकार कर | श्रीचन्द्र ने मंजली जोड़ कर कहा मैं आपका सेवक हूं, ग्राप श्री के चरण कमल में मुझे राज्य ही है। वहां कई दिन रहकर, इन्द्र की तरह वहां से प्रयाण किया। सूर्यवती के कहने से भीलों के राजा को वासुरी देश देकर सिंहपुर में प्रवेश किया। वहां चन्द्रकला बहुत ही हर्षित हुई / पूर्व जन्म की भूमि देखकर गुणचन्द्र मित्र के पास बेहोश होकर गिर पड़ा / शीत उपचार से जब उसे चेतना आयी तो श्रीचन्द्र ने पूछा क्या हुआ? गुणचन्द्र ने कहा . कि पूर्व जन्म की स्मृति हो पाई तथा अपना पूर्ण भव कह सुनाया जिससे कमल श्री को भी पूर्व भव की स्मृति हुई कमल श्री ने भी पूर्व भव का वृतान्त कह सुनाया जिससे सब बोध को प्राप्त हुये / यहां जो घरण ज्योतिषी था श्री सिद्धगिरि पर अनशन करके मैं गुण चन्द्र हुा / श्री देवी धरण की पत्नी दूसरे भव में जिनदत्ता और वह इस भव में कमल श्री हुई। लोगों ने नमस्कार महामंत्र की मोर शत्रुजय तीर्थ की महिमा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust