________________ *119 : दीर्घदर्शी दृष्टि वाले श्रीचन्द्र ने सब को बहुत अच्छी तथा कीमती वस्तुयें भेंट की। तिलक राजा की विनन्ति से राजा पुत्र सहित महोत्सव पूर्णक तिलकपुर नगर में पाये / वहां पर रत्नपुरी से पिता लक्ष्मीदत्त भष्ठी को प्राते हुये सुनकर श्रीचन्द्र राजाओं, श्रेष्ठिनों अादि सहित सन्मुख जाकर माता-पिता को नमस्कार किया श्रेष्ठी ने भी सबको नमस्कार . किया, और . जाकर प्रतापसिंह राजा के पास रहे / लक्ष्मीवती बहुओं के साथ सूर्यवती के पास रही। उस समय सब को कितनी खुशी और हर्ष हुआ होगा यह तो केवली जानें / बहुत से राजाओं ने श्रीचन्द्र को कन्यायें ब्याही और बहुत भेटें दीं। सिंहपुर से सुभगांग राजा, दीप शिखा से दीपचन्द्र राजा पारि माये और पुण्यशाली और धन्य ऐसी तिलकमंजरी के साथ श्रीचन्द्र का प्रतापसिंह राजा ने विस्तार से विवाह करवाया। अद्भुत योग हुआ। सबके मनोरय फले / तिलकमंजरी की वरमाला,श्रीचन्द्र को दिन प्रतिदिन यश रुपी सुगंध फैलाती हो ऐसी अद्भुत फूलों को देने वाली वनी / वहा से वे सब रत्नपुर आये / वहां अनेक लौंग, इलायची के मंडपो और तरह 2 के वृक्षों की छाया वाले समुद्री किनारे पर श्रीचन्द्र ने प्रतापपुर नामक नया नगर बसाया। जहां माता-पिता का परस्सर मिलाप हुआ था वहां मेलकपुर नगर बसाया। प्रतापसिंह राजा के सोने और चांदी के सिक्के बनवाये / : ..कुछ दिनों बाद कर्कोट द्वीप से चित्र प्रादि 500 पहाजों में, रविप्रभ राजा का पुत्र कनकसेन, नो बहिनों सहित दश हजार हाथियों तीस हजार घोड़ों, करोड़ों सैनिकों सहित वहां किनारे पर पाकर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust