________________ * 110 सूर्य के समान तेजस्वी श्रीचन्द्र ने सबको अलग 2 काम सौंपे / अपने मामा और वामांग को सारे कार्यों की देखभाल धनंजय को सेनापति नियुक्त किया, बाकी के लोगों को अपने अंग रक्षक आदि अलग 2 कार्य सौंपे / पद्मिनी चन्द्रकला को पट्टराणी पद पर स्थापन किया / कुजर, मल्ल, और भील को शिक्षा देकर श्रीगिरि पर रख कर श्रीचन्द्र राजा ने सब राजाओं सहित श्री जिनेश्वरदेव को नमस्कार करके माता, भाई, प्रियाओं तथा मित्र सहित वु शस्थल की तरफ प्रयाण किया। श्रीचन्द्र हाथियों, घोड़ों, रथों, गायों, बलदों, ऊंटों, महाभटो पालकियों और विशाल सैन्य के साथ बडे ठाठ बाट से आगे प्रयाण कर रहे थे। प्रयाण से विश्व व्याकुल हो उठा, शेषनाग डगमगाने लगा, कछुआ खेद को प्राप्त होने लगी, पृथ्वी डूबने लगा, समुद्र चंचल हो उठा, पर्वत गिरने लगे दिंग हस्ति माक्रन्दन करने लगे / आकाश लुप्त हो उठा दिशाएं अदृश्य होगई, सूर्य धूल के कारण ढ़क गया इस प्रकार इतनी बड़ी सेना परिवारों के साथ श्रीचन्द्र प्रागे बढ़ रहे थे / रास्ते में श्रीचन्द्र स्थान 2 पर मन्दिर, पाठशालायें मठ, प्याऊ आदि स्थापित करते हुये क्रमशः कनकपुर कुछ दिन ठहर कर फिर वहां से प्रयाण कर कल्याणपुर नगर में आये। वहां गुणविभ्रम राजा ने अपनी पुत्री गुणवती का विशाल महोत्सव पूर्वक श्रीचन्द्र से विवाह किया / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust