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________________ *1031 किसी एक व्यापारी ने इस दुष्ट को पहचान कर उसको बांध कर खूब मारा तब वह वोला कि में श्रीच द्र नहीं हूँ बल्कि कुडलेश राजा का पुत्र हूं / अति दुखी हुये हमें यह विवाह बड़ा विषम पड़ गया मन्त्री चिन्तातुर हो गये / इतने में प्रगद आया, उसके पास, मे आपके गुणों को सुना / उस दुख से दुखी हंसावली ममा करने पर भी काष्टभक्षण के लिये उत्सुक हुई है / जिसका मुख भी देखने योग्य नहीं ऐसे चन्द्रसेन को यहां लाया गया है / अहो? देखो उनका विश्वासघातीपन / अहो उसका छल-कपट,अहो उसका प्रदीर्घदर्शापन, अहो कुकृत्यपन अहो हमारा प्रज्ञान हमने पहले कुछ भी सोचा समझा नही / बहुत जल्दी की। श्रीचन्द्र राजा ने कहा कि इसमें आपका दोष नहीं परन्तु यह तो कर्म राजा की योजना है / जीव ने पूर्व में अनेक प्रकार के कर्म बांधे हुये होते हैं, उसी प्रकार से बुद्धि उत्पन्न होती है फिर वैसी भावना तथा वैसी योजना बनती है। जैसी भवितव्यता होती है। वैसे ही बनाव बनते हैं / दूसरों के दुख को न देख सकने वाले ऐसे श्रीचन्द्र ने उस राजा के पुत्र को छुड़ाया, पास में बैठाकर उसे कहने लगे तूं ने सत्कुल में जन्म लिया फिर इस प्रकार एक स्त्री के लिये ऐसा कपट कैसे किया। . बाद में राजकुमारी से कहने लगे, हे भद्रे ! दुख क्यों करती है ? ऐसा अकार्य न कर / मात्म हत्या करके मनुष्य जन्म को क्यों गंवा रही हो ? मन और वचन से स्वीकृत पति नहीं हो सकता, परन्तु जिसके साथ पाणिग्रहण होता है वही पति मावा जाता है, ऐसी रीति P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036499
Book TitleVardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddharshi Gani
PublisherVishva Shanti Prakashan
Publication Year
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size136 MB
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