________________ 102 10 चार द्वार वाला मनोहर चैत्य जिसने बनवाया वे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हो। . मन्त्रियों ने वहां जाकर पूछा और वापस आकर साग हाल राजा को कह सुनाया / हंसावली सहित राजा को आते देख, श्रीचन्द्र भी सामने गये और परस्पर नमस्कार करके एक स्थान पर बैठे। श्रीचन्द्र ने मदन सुन्दरी को उचित स्थान पर बैठा कर, राजा से पूछने लगे कि राजकुमारी के दुख का क्या कारण है ? राजा ने कहा, हे नवलक्षेश ! मेरी पुत्री हंसावली और कनकावली दोनो सखियें हैं, कनकावली अकस्मात् पाप से ब्याही, उसे और पिता के राज्य को भोगते हुये, बहुत भाग्यशाली जानकर और आपके गुणों को सुनकर हंसावली ने सर्व साक्षी से कहा, कनकावली के जो पति हैं वे ही मेरे पति हैं / इस प्रकार का विशेष पत्र कनकपुर भेजा। . लक्ष्मण मंत्री के पास से प्रापके परदेश जाने के समाचार जाने / तब से ही अन्तर से दुखी हंसावली आपका नित्य स्मरण करती है / कुडील नगर का राजपुत्र चन्द्रसेन जो हंसावली पर अनुरुक्त था, उसने हंसावली की प्रतिज्ञा को सुनकर, दुष्ट कर्म के योग से, दुष्ट बुद्धि उत्पन्न हुई / मित्र आदि से पूछे बिना, रात्रि को चन्द्रसेन ने * प्रयाण करके कनकपुर में भापकी सारी हकीकत जानी, दुष्ट बुद्धि से प्रपंच से प्रापका वेष लेकर एक मनुष्य सहित यहां आया, उसके कपट को हम पहचान नहीं सके / हमने इसे श्रीचन्द्र मानकर हर्ष से विवाह / उत्सव मनाया / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust