________________ * 850 श्रीचन्द्र सुनकर जल्दी से अपने उतारे पर आये और वहां से उस लाख के महल तक की सुरग वनवा दी / गुप्त रीति से यह कार्य हो गया। 2. पांचवे दिन जय आदि के आग्रह से राजा ने अवद्त सहित महल में प्रवेश किया। बाद में द्वार बन्ध कर राजकुमारों ने आग लगा दी / राजा ने अवदूत से पूछा, ऐसा कैसे हो गया ? 'श्रीचन्द्र' ने कहा, राज्यलुब्ध तुम्हारे पुत्रों ने राज्य लेने के लिये षड़यंत्र रचा है। यह लाख का महल आपको और मुझे मारने के लिये बनाया है। कुमारों को धिक्कार है, लोभ वश. पिता को भी मारने के लिये तैयाय, हो गये। राजा ने कहा अब क्या करें ?. तत्क्षण अवदूत ने पैर के प्रहार से सुरंग को खोल कर उस गुप्त सुरंग में प्रवेश किया, इतने में तो महल जल कर गिर गया / .. . . . .... राजा सोचने लगे, यह विध्न किस प्रकार टल गया? अवदतः की बार 2 प्रशंसा करते राजा उसके उतारे पर पहुँचे / राजा को मरा हुआ मानकर, जय भाइयों सहित राज्यसभा में छत्र स्थापन करने लगा, लोग व्याकुल हो उठे, मंत्री, लोग बुद्धि हीन हो गयेः। अवदत राजा से कहने लगा, सजन नगर बरबाद हो जायगा, लुटेरे राज्य और भन्डार को लूटने लगेंगे / राजा ने उसी समय अपने अंग रक्षको को. बुलाया, वे माये औरः राजा को जीवित देख कर, हपित होकर, राजा की आज्ञा से सैनिकों ने जय प्रादि चारों भाइयों को लकडी के पिंजरे में बन्द कर दिया। .... .. ... P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust