________________ * 74 110 कल्पवृक्ष की छाया में कोई अद्भुत देवी लक्ष्मी, कुलदेवी या ब्राह्मी ने मुझे गोद में लिया है इस प्रकार का अद्भुत स्वप्न मैंने अभी देखा है जिससे मुझे महान् लाभ होना चाहिये इसमें कोई संशय नहीं है / इतने में अटवी में से कोई चकित लोचन वाली देदीप्यमान प्राभूषणों से युक्त 'लाल फटे हुये वस्त्र वाली सगर्भा सधवा स्त्री अति वेग से प्रारही थी। अमृत के मंजन वाली दृष्टि है जिसकी ऐसी माता को देखकर श्रीचन्द्र एक दम उठकर सन्मुख गये और दोनों चरणों में नमस्कार करके कहने लगे, हे माता ! दुख और मन का खेद अब गया समझो, भय भी गया अब जाणो, मेरे भाग्य से तुम यहां किस तरह आई ? श्रीचन्द्र के वचन सुनकर और उसे देखकर हर्ष से जितने में मन्दिर में जाने लगती है इतने में श्रीचन्द्र के नाम वाली अंगूठी देखकर पहचान कर अति हर्षे . के कारण उसके स्तनों से दूध झरने लगा। ललाट को देखकर पूछन लगी कि क्या तुम लक्ष्मीदत्त सेठ के घर प्रसिद्धि पाये हुए श्रीचन्द्र हो ? राजा ने ऊं कहकर हां कही। पुत्र जानकर हर्ष से आंसू बहाती हुई गोद में लेकर प्रांसुओं से नहलाती हुई गाढ़ स्वर से रुदन करती हुई कहने लगी 'हे वत्स ! मैं तेरी मां सूर्यवती हूं। तू मेरा पुत्र है, प्राज हे पुत्र ! बारह वर्ष बाद दृष्टि से मिला है। (हस्तलिखित रास में 24 वर्ष लिखा है) ऐसा कह कर दृढ़ आलिंगन कर हर्ष से पागल जैसी होगई / श्रीचन्द्र को भी अपनी मां जावकर बहुत खुशी हुई और कहने लगे हे माता ! तुम माता कैसे हो ? लाल वस्त्र वाली किस लिये ? यह कहो / सूर्यवती ने स्वचरित्र, विवाह आदि, नैमित्तिक की वाणी, स्वप्न, चन्द्र P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust