________________ 674 . राजा, श्रेष्ठी आदि सब कुशल मंगल में हैं सिर्फ आपके ही वियोग का : दुख है। प्रभु की दिशा जानकर प्रतापसिंह राजा ने बहुत से सैनिक भेजे हुए हैं। मैं भी प्रापके स्नेहवश सब धनंजय को सौंप कर बहुत सैनिकों के साथ निकला था। कुन्डलपुर में चन्द्रलेखा और चन्द्रमुखी से प्रापकी सारी हकीकत : जानी महेन्द्रनगर में जाकर सुलोचना राजकुमारी को नमस्कार कर हेमपुर के स्वरूप को प्राप्त कर कान्तिपुर में आया, प्रियं गुमंजरी बहुत हर्षित हुई उन्हें नमस्कार कर इस दिशा की तरफ आया / मार्ग में दूसरे रास्ते भी निकलते थे उन रास्तों पर सैनिकों को भेजा नगर, गांव, वन , इस तरह सब जगह आपकी खोज करते इस नगर में श्रीचन्द्र राजा हैं ऐसा सुनकर हर्ष से जल्दी में इस तरफ आया मार्ग में अश्व मृत्यु को प्राप्त हुआ जिससे पैदल चलकर अकेला पाया हूं। प्राज प्रापश्री को देखकर कृत्य 2 होगया हूं मुझे जो दुख था अब वह सुख रूप में बदल गया है / ....., मन्त्री सामन्तों आदि ने गुणचन्द्र से अपने राजा के माता पिता ... और कुल जानकर हर्षित होते हुये अपने 2 घर गये / मित्र को महान् .. अमात्य पद पर स्थापित किया। इस प्रकार किये पूर्व तप के प्रभाव से .. श्रीचन्द्र राजा विशाल राज्यको मित्र सहित चला रहे हैं / कहा है कि धर्म के : प्राधार पर ही जगत है, वही धर्म सत्पुरुषों के उपयोग में स्थिर स्वरूप :- वाला है वे सत्पुरुष जो सत्यनिष्ठ होते हैं वे सत्य सुख रूप सन्तोष को धारण करते हैं अर्थात् सुख रूप सन्तोष उत्पन्न करता है और वह सन्तोष उन्मत्त विषयों के विजय से उपार्जित जय वाला है और वह जय तप से ही साध्य है अर्थात् . यह सारी तप की ही महिमा है सारांश यह है कि .: उपरोक्त सद्गुण उत्तरोत्तर संबंधित है। ... . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust