________________ * 15 340 -.. - राजा ने कन्या को बुलवाया। अवदूत ने कहा सभा को चारों तरफ से पवित्र करो ! बाद में कन्या को पर्दे के पीछे बिठा कर विज्ञान चिकित्सा करके कन्या के नेत्रों में अमृत संजीविनी वेल का रस डाल कर तथा और भी किया कान्ड करके वहीं अपना असली वेश धारण कर नमस्कार महामन्त्र का ध्यान करने के लिये बैठ गये / जब तक रस सूखे तब तक पूजा आदि क्रिया करते रहे / अमृत संजीवी औषधि के प्रभाव से कन्या के नंत्र कमल जैसे हो गये / कुमार इन्द्र की तरह पूजा कर रहा था। अलौकिक प्राभूषणों से भूषित, सूर्य के समान तेजस्वी कुमार के मस्तिष्क को देखकर कन्या श्री अरिहंत भगवान को नमस्कार करके बहुत ही खुश हुई। श्रीचन्द्र ने कहा हे भद्रे ! तुझे अच्छी तरह दिखाई दे रहा है ? मेरी अंगूठी में क्या नाम है पढ़ / . उसे पढ़कर बड़ी प्रसन्नता से सुलोचना ने श्रीचन्द्र की प्रशंसा करते हुए कहा कि 'हे प्राण जीवन ! पहले मुझे पिताजी ने आपको दी थी, अब मैं हृदय से प्रापका वरण करती हूँ। अंगूठी से नाम की जानकारी हुई तथा आचार से कुल पहचान गई हूँ।' उसके बाद श्रीचन्द्र ने अद्भुत रूप बदल कर अपना पुराना अवदूत का वेष पहन, भस्म आदि लगाकर बाहर राजा के पास आए / राजा ने पूछा, नेत्र ठीक हो गये हैं ? राजकुमार ने कहा हां नेत्र बहुत सुन्दर हो गये हैं अब राजकुमारी सचमुच सुलोचना है। त्रिलोचन राजा ने सुलोचना को अपनी गोदी में बिठाया, सब को बहुत प्रानन्द हुा / राजा ने पुत्र जन्म जैसा महान महोत्सव किया / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust