SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ................ ~ ~ ~ श्रोशान्तिनाथ चरित्र / की आज्ञा ले, आपसे ही व्रत ग्रहण करूंगा।" यह कह, उसने अपने घर आ, माता पितासे कहा,- "हे पिता ! हे माता ! तुम लोग मुझे दीक्षा लेनेकी आज्ञा दे दो।" यह सुनकर उन लोगोंने उसे बहुत तरहसे समझाया ; पर वह अपने विचारसे न डिगा / तब लाचार होकर उन्होंने कहा, “हे पुत्र ! यदि तुम दीक्षा लोगे, तो हमलोग भी तेरे साथ ही दीक्षा ले लेंगे।" उनकी ऐसी बात सुन, धनदने राजाके पास जाकर अपपा अभिप्राय; उनसे कह सुनाया। राजाने भी कहा,"मैं भी तुम्हारे साथ ही व्रत ले लूंगा।" यह सुनकर धनदने कहा,"हे नाथ! गृहस्थी में तो आप मेरे खामी रहें ही ; यदि यति होने पर भी आप ही मेरे स्वामी बने रहें, तो इससे बढ़कर और क्या चाहिये ?" ..इसके बाद राजाने कनकप्रभ नामक अपने पुत्रको राजगद्दी पर बिठाकर धनदके पुत्र धनवाहको सेठ के पद पर स्थापित कर दिया / तदनन्तर राजा, माता-पिता और भार्याके साथ धनदने गुरुके पास आकरदीक्षा ले ली। कालक्रमसे वे लोग सब प्रकारके तप कर, शुद्ध प्रतोंका पालन कर, शुभ ध्यान करते-करते शरीर छोड़कर देव लोकमें चले गये। वहाँसे च्युत होनेपर वे लोग महाविदेह क्षेत्र में मनुष्य भव पाकर, चारित्र ग्रहण कर, मोक्षपद प्राप्त करेंगे। ..... मत्स्योदर कुमार-कथा समाप्त। .. चारण मुनिने कहा,- "हे विद्याधरेन्द्र अमिततेज! धनदकी यह कथा सुनकर तुम्हें निरन्तर निष्कलङ्क धर्म करना चाहिये।" ... ऐसा उपदेश पाकर अमिततेजने गुरु की आज्ञा सिर पर चढ़ायी और दोनों मुनियों को प्रणाम किया। इसके बाद वे चारण-श्रमण मुनि आकाशमें उड़कर अन्यत्र चले गये। . राजा श्रीविजय और अमिततेज धर्म कर्ममें तत्पर रहते हुए कालक्षेप करने लगे। दोनों पुण्यात्मा राजा प्रति वर्ष तीन-तीन यात्राएँ किया करते थे, जिनमें दो यात्राएँ शाश्वत तीर्थ की और एक अशा"श्वत तीर्थकी होती थी। एक चैत्र-मासमें और दूसरी आश्विनमास P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy