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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र / राजकुमारोंको भली भांति देख-भालकर ज्योतिष्प्रभाने अमिततेजके गले में माला डाल दी। सुताराने भी श्रीविजयके गले में वरमाला पहिना दी। यह देख, सब भूमि और आकाशमें विचरण करनेवालोंने कहा,"महा! इन दोनोंही कन्याओंने बड़े उत्तम वर चुने / " तदनन्तर त्रिपृष्ठ . और अर्ककीर्त्तिने आये हुए सब राजाओंका यथाशक्ति आदर-सत्कार कर उन्हें बड़े मानके साथ विदा किया और बड़ी धूमधामसे प्रीतिसहित अपनी-अपनी कन्याओंका विवाह करडाला। इसके बाद अर्ककीर्त्तिने अपने पुत्र और ज्योतिष्प्रभाको साथ ले, अपनी कन्या सुताराको वहीं छोड़, अपने नगरकी ओर प्रस्थान किया और वहाँ पहुँचकर सुखसे राज्य करने लगा। कुछ दिन बीते, अकीर्ति राजाने वैराग्य ले लिया और अपने पुत्र अमिततेजको राज्यका भार अर्पणकर किसी मुनीश्वरसे दीक्षा लेली। - क्रमशः त्रिपृष्ठ वासुदेवको परलोक प्राप्त हो गया। उसके बाद एक दिन पोतनपुरके उद्यानमें श्रेयांस जिनेश्वरके शिष्य सुवर्णकलश नामक सूरि परिवार सहित आ पहुँचे। उनके आनेका समाचार पा, अचल बलदेव उनकी वन्दना करनेके लिये उद्यानमें आथे। उसने आचार्यको प्रणामकर, गुरुले मोहका नाश करनेवाली देशना श्रवण की। इसके बाद अचलने समय देखकर उनसे पूछा, "हे भगवन् ! गुणमें बड़ा और वयसमें छोटा मेरा भाई त्रिपृष्ठ मरकर किस गतिको प्राप्त हुआ है ?" सूरिने कहा,-"तेरा भाई पञ्चेन्द्रियादिक जीवोंका वध करने में आसक्त रहता था, उसकी आत्मा कठोर थी, वह बड़े-बड़े आडम्बरोंमें तत्पर था, इसलिये वह मरकर सातवें नरकमें चला गया है।" - यह सुनकर स्नेहके मारे आकुल हो, अचल बहुत विलाप करने लगा। उसने कहा,"हे वीर ! हे धीर ! यह तेरी कैसी गति हुई ?" गुरुने कहा, "हे अचल! तू खेद मत कर। पूर्वमें ही जिनेश्वर कह चुके हैं, कि उसका जीव इस चौबीसीमें पिछला तीर्थङ्कर होगा।” यह सुनकर अचलने दूसरे पुत्रको युवराजका पद.दे दिया और आप सूरीश्वरसे दीक्षा ले ली। राजा श्रीविजय राज्यका पालन कर रहे थे। इसी बीच एक दिन P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aarathak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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