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________________ षष्ठ प्रस्ताव / 415 ऐसी र हो गयी है ?" इसके . उत्तरमें उस भीलने. अपना सारा हालहसुनाया और भोजन, वस्त्राभूषणका तथा शय्या आदिका जैस सुरु अनुभव. किया था, वह भी उन्हें बतलाया। भीलोंने उसने कहा, हमने वहाँ जैसा सुख अनुभव किया था, वह दृष्टान्त साहित हमें बतलाए यह सुन, उसने उनकी जानी हुई चीज़ोंके साथ. उपमा देते हुए कहा,-"वादिष्ट कन्द और फलोंके समान लड्डू मैं खाया करता था। जैसे यहाँ हम लोग नीवार खाते हैं, वैसे वहाँ दालभात आदि खाया करता था। गुन्दीके पत्तोंकी तरह नागरबेल-पान मुझे खानेको मिलते थे। शाल्मलीवृक्षके समान सुपारीके चूर्णको मैं खाता था / वल्कलके समान मनोहर वस्त्रना था। पुष्पोंकी मालाके समान गहने पहनता था / छिद्र-रहित गुफ़ाके 6 गुन मन्दिरमें रहता था और शिलातलके समान विशाल शय्यापर सोया करता था / " इस प्रकार उस भीलने उत्तमोत्तम पदार्थों की अन्य वस्तुओंके साथ उपमा देते हुए उन्हें अपने ऐशो आरामका हाल कह सुनाया। इसी तरह मैं भी संसारमें रहने वाले जीवोंको सिद्धि-सुखका वर्णन इस लोकमें मिलने वाली वस्तुओंके साथ तुलना करके कह सुनाता हूँ। जो सुख . काम-भोगसे उत्पन्न होता है और जो सुख महान् देवलोकमें होता है, . उससे अनन्तगुण अधिक सुख सिद्धोंको होता है और वह शाश्वत (अक्षय) होता है / भेद केवल इतना ही है, कि संसारका सुख पौद्गलिक और विनाशी है तथा सिद्धोंका सुख अपौद्गलिक ( आत्मिक ) अविनाशी (शाश्वत ) है।" ... ... इतनी बातें कह, श्री शान्तिनाथ भगवान उस स्थानसे उठकर उसी पर्वतके एक श्रेष्ठ शिखरपर चढ़ गये। वहाँ नौ सौ केवलियोंके साथ स्वामीने महीने भरका अनशन किया। उसी समय सभी सुरेन्द्र, परिवार सहित, अत्यन्त प्रीति और भक्तिके साथ, जगन्नाथकी सेवा करने लगे। अन्तमें ज्येष्ठ मासकी कृष्ण चतुर्दशीके दिन, जब चन्द्रमा भरणी-नक्षत्रमें था, तब शुकध्यानके चौथे पदका ध्यान करते हुए स्वामीने मोक्ष-पद. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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