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________________ mina r amainaminimamrnamrammrammnnamri 413 षष्ठ प्रस्ताव / भीलप्ती थी। वे कन्द-मूलके खानेवाले थे और वृक्षोंकी छालके वस्त्री शिलातलको ही वे अपना आसन और शय्या समझते थे। इसे / हरते हुए वे भील अपनेको अत्यन्त सुखी मानते थे और कहा करते थे, कि-"लोग जो भीलोंकी रहन-सहनकों अच्छा बतलाते हैं, वह कुछ सत्य नहीं है, क्योंकि उन्हें झरनेका पानी आ. सानीसे मिल जाता है,जानेके लिये कुछ परिश्रम नहीं करना पड़ता और सदा अपनी प्रियाके पास ही रहना होता है।" इन्हीं भीलों से कोई एक भील घूमता-फिरता राजाके पास आ पहुँचा। अलङ्कारोंसे यह पहचान कर, कि यह कोईए है, उसने अपने मनमें सोचा,-"अवश्यही यह कोई राजा मालूमता है और प्याससे व्याकुल होकर गिर पड़ा है। यह अवश्यही पानीको बिना मर जायेगा। इसके मरनेसे सारी पृथ्वी स्वामी-शून्य हो जायेगी, इसलिये इसे पानी पिला कर जिला देना ही उचित है।” ऐसा विचारकर उसने पत्तोंका. दोना बनाकर उसीमें जलाशयसे पानी भरकर राजाको ला पिलाया, जिससे वे स्वस्थ हो गये / इसके बाद होशमें आये हुए राजा मन-हीमन उसका बड़ा उपकार मानते हुए उसके साथ बातें करने लगे। इसी समय उनके पीछे-पीछे आते हुएं सैनिक भी वहां आ पहुंचे। सैनिकोंने राजाके आगे सुन्दर लड्डू और शीतल जल रख दिया। राजाने उसमें से मोदक आदि निकाल कर पहले उस भीलको खानेके लिये दिया, इसके बाद सुखासनपर बैठ अपने उपकारी भीलके साथ-साथ राजा अपने नगरमें आये। वहाँ पहुँच, उस भीलको स्नान करा, मनोहर वस्त्र पहना, अलङ्कारोंसे सुसजितकर, चन्दनादिका विलेपन कर, दाल और भात आदि उत्तम भोजन खिलाकर राजाने उसे तेरह गुणोंवाला ताम्बूल उसे खानेको दिया। इसके बाद वह राजा की आज्ञासे सुन्दर महलमें मनोहर शय्यापर सोया, प्रसन्न राजाने उसकी सारी दरिद्रता दूर की। इस प्रकार उस भीलको बड़ा सुख मिला, तो भी वह अपने जङ्गलको नहीं भूला / कहा भी है, कि P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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