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________________ षष्ठ प्रस्ताव। 411 वाले राजीव आदि तत्वोंके जाननेवाले; राक्षस, यक्ष और देवादि द्वारीन टलनेवाले ; अस्थि तथा मजा पर्यन्त जिन धर्मसे वाक्षित वचनोंको ही तत्त्वरूप माननेवाले; चारों पर्वो में पौषधवर को ग्रहण के एनेवाले और सदा निरवद्य आहारादि देकर मुनियोंका समान करने वाले पेशान्तिनाथसे प्रतिबोध पाये हुए दो लाख नब्वे हजार श्रावक तथा विशिष्ट गुणोंको धारण करनेवाली तीन लाख तिरानवे हज़ार श्राविकाएं हुई। जिन नहीं होते हुए भी जिनकी भांति अंदीत अनागत और वर्तमान स्वरूपको जाननेवाले आठ हज़ार चौदह पूर्वी हुए। असंख्य मनुष्य-भव है. स्वरूपवान्-द्रव्योंको प्रत्यक्ष देखनेवाले तीन हज़ार अवधिज्ञानी हुए श द्वीपोंमें रहनेवाले संज्ञावान् जीवोंके मनके पर्यायोंको जाननेवाले चास हज़ार मनःपर्यवज्ञानी हुए। छः हजार वैक्रिय लब्धिवाले मुनि हुए तथा दो हजार चारसौ वाद लब्धिवाले हुए। प्रभु शान्तिनाथका इतना बड़ा परिवार बंध गया। श्रीशान्तिनाथके शासनमें भगवानका वैयावृत्य करनेवाला और श्रीसंधके समग्र विघ्नोंके समूहका नाश करनेवाला 'गरुड़' नामका यक्ष हुआ तथा भक्तजनोंकी सहायता करनेवाली निर्वाणी नामकी शासनदेवी हुई। चक्रायुध राजाका पुत्र कोणाचल नामक राजा भगवान्का सेवक हुआ। भगवान्का शरीर चालीस धनुषकी ऊंचाईका था; उनके मृगका लाञ्छन था और ऐसी सोनेकी सी चमकती हुई रूपस्वी कान्ति थी, जिसकी उपमा तीनों जगत्में नहीं हो सकती। भगवान्को जन्मसे ही चारों अतिशय उत्पन्न हुए थे, जो ग्यारह कर्मोंके क्षयसे उत्पन्न हुए थे। साथ ही उन्नीस अतिशय देवोंके किये हुए उत्पन्न हुए, थे। इस प्रकार सिद्धान्तमें कहे हुए चौंतीस अतिशय सब जिनेश्वरोंके होते हैं तथा तीनों जगत्की प्रभुता प्रकट करनेवाले छत्रत्रय, अशोकवृक्ष आदि आठ प्रातिहार्य भी होते हैं। श्रीशान्तिनाथ जिनेश्वर पचहत्तर हजार वर्ष गृहवासमें रहे, एक वर्ष छमस्थ अवस्थामें रहे और एक वर्ष कम पचीस हज़ार वर्ष केवली-पर्याय P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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