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________________ षष्ठ प्रस्ताव / 401 कहा, "हे श्रेष्ठीपुत्र! तुमने कहीं और न जाकर यहीं उतरकर बड़ा अच्छा काम किया। हम लोग तुम्हारे अपने ही हैं। हम लोग तुम्हारा सब माल ले लेंगे, तुम्हें बेंचनेके लिये तरद नहीं करना पड़ेगा। यहाँ हमलोग यह सब ख़रीद लेंगे और जब तुम घर जाने लगोगे, तब जैस माल कहोगे, वैसा माल तुम्हारे जहाज़में भर देंगे।" यह सुन, श्री पुत्रने उनकी बात मान ली। उन कपट बुद्धि बनियोंने उसका सामाल ले, आपस में बांट लिया और अपने-अपने घर चले गये। इस बाद रत्नचूड़ अच्छे-भले कपड़े पहन, सुन्दर अलङ्कार धारणकर, अवीतौकरोंके साथ नगरकी ओर अन्यायी राजासे मिलने चला। र एक मोचीने सोने-चांदीके लैस टँके हुए दो जोड़े जूते उसकी भेंट किये। उन्हें लेकर उसने कहा, "भाई ! इनके दाम क्या हैं ? यह सुन, उसने बड़े दाम मांगे। तब रत्नचूड़ने सोचा, "यह तो बड़े अन्यायकी बात कहता है।" इसके बाद उसने उसे पान देकर कहा,"हे कारीगर! जब मैं जाने लगूंगा, तब तुम्हें खुश कर दूंगा।" यह कह, उसे विदा कर, सेठ आगे बढ़ा, इतनेमें उसे सामने ही कोई काना : जुआरी मिला। उसने सेठसे कहा,-"सेठजी ! मैने अपनी एक आंख तुम्हारे पिताके पास हज़ार रुपये लेकर बन्धक रखी थी, इसलिये अपने रुपये लेकर मेरी आँख वापिस कर दो।" यह कह, उसने सेठको हज़ार रुपये दे दिये / यह सुन, रत्नचूड़ने सोचा,-"यह तो एकदम अनहोनी बात कह रहा हैं। तो भी जब यह धन दे रहा है, तब इसे ले ही लेना चाहिये ; फिर जो उचित मालूम होगा, वह करूँगा। यही सोचकर उसने हज़ार रुपये लेकर उससे कहा,-"जब मै यहाँसे लौटने लगूंगा, तब. तुम मेरे पास आना।" यह कह, वह आगे बढ़ा। . रत्नचूड़को देखकर, चार धूर्त आपसमें बातें करने ली। एकने कहा,-"समुद्रके जलका प्रमाण और गंगाकी, रेतकी कणिकाओंकी गिनती भले ही कोई बुद्धिमान् कर ले ; पर वह भी स्त्रीके हृदयकी तह तक नहीं पहुँच सकता।" यह सुन, दूसरेने कहा, "यह तो किसीने P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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