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________________ षष्ठ प्रस्ताव / 366 सकता है। इसलिये बेटा ! तुम परदेश जाकर क्या करोगे? यह मैंने जितनी सम्पत्ति उपार्जन कर रखी है, वह सब तुम्हारी ही है / " ऐसा कहनेपर भी उसने अपनी हठ नहीं छोड़ी। तब पिताने उसे जानेकी आजा दे दी। जिस कामको करनेके लिये आदमी निश्चय कर लेता है, व भला कैसे नहीं होगा.? इसके बाद रत्नचूड़ने अपने पितासे लाख रुपया अपने खाते नाम शिवाकर लिया और उसोसे किरानामाल खरीद, एक भाडेके जहाज़में भर आप उसीपर सवार होने चला / उसी समय सेठने आकर उसे वीकार शिक्षा दी “बेटा! देखना, अनीतिपुर नामक नगरमें भूले भी क्षा, क्योंकि वहाँके राजा अन्यायी हैं, जिनके अविचार नामक मन्त्री, सर्वग्राह्य नामक कोतवाल और अशान्ति नामक पुरोहित हैं। वहाँ गृहीतभक्षक नामक सेठ, मूलनाश नामका उसका पुत्र, रणघण्टा नामकी वेश्या और यमघण्टा नामकी कुटनी है। उस नगरमें चोर, जुआरी और परस्त्रीग्रामी लोग बहुत रहते हैं। उस नगरके लोग सदा ऊँचे-ऊँचे मकानों में रहते हैं / यदि कोई अनजान आदमी वहाँ व्यापार करनेके लिये पहुँच जाता है, तो वहाँके लोग, जो लोगोंको ठगनेमें बड़े उस्ताद हैं, उसका सर्वस्व हरण कर लेते हैं। इसलिये तुम सिर्फ उसी अनीतिपुर नगरको छोड़कर और जहाँ चाहो, वहाँ ब्यापार करनेके लिये जा सकते हो / देखो, मेरी यह शिक्षा कभी न भूलना।" इस प्रकार पिताकी शिक्षा सिर-आँखोंपर चढ़ा, मांगलिक उपचार कर, वह सेठ-सुत शुभ-मुहूर्तमें घरसे बाहर निकला, उसके स्वजन उसे पहुँचाने चले और शुभ शकुनोंसे उत्साहित होता हुआ वह समुद्रके किनारे आया। कहा है, कि 'गोकन्याशंखवाद्यं दधिफलकुसुमं पावकं दीप्यमानं, यानं वा विप्रयुग्मं हयगजवृषभ पूर्णकुम्भं ध्वजं वा / उदखाता चैव भूमिर्जलचरयुगल सिद्धमन्नं शवं वा, वेश्या स्त्री मांस पिण्डं प्रियाहिंतवचनं मंगलं प्रस्थितानाम् // 1 // "P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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