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________________ बष्ठ प्रस्ताव / 367 wwwvvvvvvvvvvvM प्राप्ति होगी।" यह सुन, सेठानी बड़ी हर्षित हुई। क्रमसे गर्भका समय पूरा होनेपर सेठानीके एक शुभलक्षण-युक्त पुत्र हुआ। स्वप्नके अनुसार ही उसका नाम रत्नचूड़ रखा गया। जब वह लड़का पाँच वर्षका हुआ, तब सेठने उसे विद्या-शालामें कलाभ्यास करनेके लिये भेज दिया। कमसे पुरी युवा हुआ। अब तो वह विचित्र शृङ्गार कर उद्भठ वेश धारण ये, अपने समान वयसवाले मित्रोंके साथ नगरके उद्यान आदिमें मामाने तौरसे क्रीडा-विलास करने लगा। एक दिन वह चौंकपरसे नामकर धीरे-धीरे चला आ रहा था, इसी समय सामनेसे चली यी हुई राजाकी प्यारी वेश्या सौभाग्यमञ्जरीके कन्धेसे वह टकरा इतनेमें उस वेश्याने उसका वस्त्र पकड़, क्रोधसे मिली हुई हँसीके सार्थ कहा; -“वाहजी सेठके बेटे ! विद्वानोंने ठोक ही कहा है; कि धन होनेपर लोग आँखें रहते भी अन्धे, बहरे और गूंगे हो जाते हैं। इसीसे तो तुमने इस नयी जवानीमें, दिन-दहाड़े चौड़े रास्तेपर सामनेसे आती हुई मुझको नहीं देखा ! अरे भाई ! तुम्हें धनका इतना घमण्ड करना ठीक नहीं ; क्योंकि नीतिके जाननेवाले विद्वानोंने कहा है, कि बापकी कमाईपर कौन नहीं मौज करता ? पर तारीफ़ तो उसकी है, जो अपनी बाज-कूवतकी कमाई पर मौज करता फिरता हो। नीतिशास्त्रमें कहा है_ "मातुः स्तन्यं पितुर्वित्तं,. परेभ्यः क्रीडनार्थनम् / ___ पातुं भोक्तं च लातुं च, बाल्य एवोचितं यतः // 1 // " अर्थात् - 'माताका स्तन पान करना, पिताकी सम्मत्तिका उपयोग करना और दूसरों से क्रीडाकी वस्तुएँ माँगना--ये सब काम लड़कोंको ही सोहते हैं / ' और भी कहा है, कि "सोलसवरिसो पुत्तो, लच्छिं मुंजेइजो पिय जणस्स। .. सो रणख्यो पुत्तो, पुत्तो सो वयरवेण // 1 // - अर्थात्--"जो पुत्र सोलह वर्षकी उमर हो जानेपर भी पिताकी ही उपार्जित लक्ष्मीका उपयोग करता है. उसे ऋणी या वैरी ही समझना चाहिये / " ...... . . "सालस P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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