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________________ - षष्ठ प्रस्ताव / nN मजदूरकी स्त्री छांछ लेने आयी है। क्या मैं उसे अन्दर बुला लाऊँ ?" राजाने हामी भरी / जब वह अन्दर आयी, तब राजाने उससे पूछा,. "हे भद्रे ! तुम्हारी यह अंगिया ऐसी फटी पुरानी क्यों है ?" यह सुन, लज्जासे नम्र बनी हुई शीलमती कुछ भी न बोली / इसके बाद राजाने उसे बहुतसा छांछ-दही दिलवा दिया। उसे लेकर शीलमती अपने स्थानपर आयी / तब उसके ससुरने कहा,--"बेटी ! अब तो तू नयी अगिया पहन ले; क्योंकि तुझे राजाके घर जाना पड़ता है; इसलिये यह पहनावा बड़ा बुरा दिखता हैं।" उसके ऐसा कहने पर भी उसने उसकी बात नहीं मानी। दूसरे दिन वह फिर राजाके घर छांछ लेने आयी / त र ने कहा,- "हे. भद्रे ! मैं तुम्हें यह नयी अँगिया देता हूँ, इसे पर / " किन्तु बारम्बार कहने पर भी उसने वह अँगिया नहीं ली। तरह जाने कहा,- “यदि तुम मेरी आज्ञा न मानोगी, तो तुम्हारी खैरिया नहीं है।' यह सुन, उसने कहा, "हे देव, ! चाहे खैरियत हो . न हो; पर मैं अपने निश्चयसे नहीं टल सकती। नीतिकारोंने कहा हैं, कि लक्ष्मी आये चाहे चली जाये, लोग चाहे जो कुछ कहा करें; जान रहे या चली जाये ; पर भले आदमी न्यापको नहीं छोड़ते।" यह / सुन, राजाने कहा,-"सेवको! इस स्त्रीको कैद कर लो-यह मेरी आशा-- को भङ्ग करती है। यह सुनतेही राजाके सेवकोंने उसे कैद कर कैदजानेकी ओर पग बढ़ाया। इतना हो चुकनेपर भी उसने अपना निश्चय तोड़ा। तब राजाने सन्तुष्ट होकर उसे अपने पास बुलवा कर प्रिया-- "हे भद्र! तुम इस शरीरकी शोभाको बिगाड़नेवाली फटी पुरानी खराब अँगियाको क्यों नहीं उतार देतीं ?" उसने कहा, "मेरे माथेका जूड़ा मेरे स्वामीका बाँधा हुआ है और यह अँगिया भी. उन्होंनेही अपने हाथों पहनायी है ; इसलिये अब तो इनके बन्धन उन्हींके हाथों खुलेंगे, नहीं तो ऐसे ही रहेंगे।" तब राजाने कहा, "मैं ही तुम्हारा स्वामी हूँ; इसलिये अब तुम यह अंगिया उतार डालो।" यह सुन, शीलमतीने कहा,-"महाराज! आपको ऐसी बात नहीं कहनी चाहिये क्योंकि. Sunratnasuti M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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