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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। maaamwwwmommawwwwwwwwwana ___भगवान्ने कहा,-"अब मैं दूसरा देशावकाशिक नामक शिक्षाप्रत बतलाता हूँ। इस व्रतमें दिग्वतके परिमाणका और अन्य सब व्रतोंका सदा संक्षेप करना होता है। इसके आनयन प्रयोग * आदि पाँच अतिचार हैं। इस व्रतको शुद्ध रीतिसे निवाहनेसे गङ्गदत्त श्रावककी तरह मनुष्यके लोक परलोक सफल हो जाते हैं।" भगवान्की यह बात सुन, श्रावकोंने उनसे गङ्गदत्तकी कथा सुनानेको कहा। भगवान्ने उसकी जो कथा सुनायी, वह इस प्रकार है, - . गङ्गदत्त श्रावककी कथा .इसी भरतक्षेत्रमें शंखपुर नामका नगर है। उसमें गङ्गदत्त नामका एक प्रसिद्ध वणिक रहता था। एक दिन उसने गुरुले श्रावक-शर्म प्रहण किया / वह निरन्तर बारहों व्रतोंका पालन करता था। एक दि उसने देशावकाशिक व्रत ग्रहण किया। उसदिनउसने सोचा,-"आजी प्रकारका अभिग्रह ग्रहण कर वह घर पर ही रहा। उसी समय उसके | किसी मित्र वणिक्ने आकर कहा,-"आज नगरके बाहर एक काफ़िला आया हुआ है। अगर तुम वहाँ चलो, तो हम दोनों वहाँ जाकर सते भावसे किराना खरीदें और खूब लाभ उठायें।" यह सुन, गङ्गन्दभः कहा,-"मित्र! आज तो मैं नहीं आ सकता। मैंने आज हो देशावर शिक व्रत लिया है / आज मैं चैत्यके सिवा और किसी जगह घर बाहर नहीं जा सकता।" उसके मित्रने फिर कहा, "मित्र ! र बड़ा लाभ होनेको सम्भावना है। इसे क्यों हाथसे जाने देते तुम फिर किसी दिन व्रत ले लेना / " गङ्गदत्तने कहा, "मित्र धर्मकी हानि हो, ऐसे बड़े आडम्बरवाले लाभका क्या फ * निर्णित बाहरी स्थानसे कोई चीज़ दूसरेके टा प्रयोग कहलाता है। . . . . . . . वको तथा साधुओंको P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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