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________________ षष्ठं प्रस्ताव / 'अन्ने देशे जाया, अन्ने देशे वढिया देहा। जे जिणसासणरत्ता, ते य मे बन्धवा भणिया // 1 // ' . अर्थात् - 'जो अन्य देशमें उत्पन्न हुए और अन्य देशमें ही जिनके शरीरने वृद्धि पायी है, वे भी जिन शासनानुरक्त होनेके कारण मेरे बन्धु हैं।" ___“अब तुम मुझे अपना वृत्तान्त कह सुनाओ। मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है। तुम कौन हो और इस कुएँ में कैसे आ पहुँचे हो, यह सब मुझे बतला दो।" इसके उत्तर में उसने कहा,- "हे बन्धु / मेरा हाल सुनो / मैं विशालानगरीका रहनेवाला जिनशेखर नामका वणिक हूँ। व्यापारके निमित्त जहाज़ पर चढ़कर मैं समुद्रमें जा रहा था, कि एका. एक रास्तेमें मेरा जहाज़ नष्ट हो गया। बड़े कष्टसे एक तख्ता पकड़ कर मैं जीतेजी समुद्र के बाहर निकला। इसके बाद जङ्गलमें घूमते. फिरते मुझे एक परिव्राजक मिल गया, जिसने मुझे रसका लोभ दिखा, इस कुएँ में लाकर ढकेल दिया / ज्योंही मैं तुम्बियाँ भर कर कुएँ के मुँह पर पहुँचा था, त्योंही उसने मुझसे तुम्बियाँ लेकर मुझे कुएँ में डाल दिया। मैं अनुमान करता हूँ, कि तुम्हें भी वही योगी ': कुएँ में उतार लाया है। वह बड़ा ही दुष्टात्मा है। उस पर हरगिज़ विश्वास न करना। "हे सुश्रावक ! अब तुम भी मुझे अपना नाम आदि बतला दो।" इसके उत्तरमें सुलसने उससे अपना वृत्तान्त कह सुनाया। इसके बाद उसके साधर्मिकने वे दोनों तुम्बियाँ रससे भर कर उसे दे दी। तदनन्तर खटोलीके नीचे दोनों तुम्बियोंको बाँधकर लसने रस्सा हिलाया। तब परिव्राजकने उसे कुए के मुँहके पासपुत्राने खींच लाकर कहा, - “हे भद्र ! पहले तुम मुझे वे दोनों तुम्बियाँ मैना से इसके बाद मैं तुम्हें बाहर निकालूंगा।" सुलसने कहा,किया पयाँ खूब मज़बूतीके साथ खटोलीके पायेमें बँधी हैं। यह हैं उससे फिर तुम्बियाँ मांगी; पर उसने नहीं दी। तब उसने तम्बियों सहित दसको कुएँ में डाल दिया और आप कहीं और P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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