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________________ . षष्ठ प्रस्ताव। नगरमें कहीं डेरा जमाकर रहना और इस उपायसेधन कमाना चाहिये।” यही सोच कर वह उन्हीं आदमियों के साथ रत्नपुञ्ज नगरमें चला गया। .. वहाँ वह एक बूढ़े बनियेके घर जा टिका / उसने उसे भोजन कराया। तव भोजन करके सुलसने उससे सब हाल कह सुनाया। इसके बाद रत्नोपार्जन करनेमें उत्साहित होकर वह कुदाल आदि सामग्रियाँ लेकर रत्न इकट्ठा करने लगा। इसी तरह रत्न-संग्रह करते हुए एक दिन उसे एक बड़ा ही मूल्यवान् रत्न हाथ लगा। किसी-किसी तरह उस रत्नको अपने शरीरके अन्दर छिपा कर वह खानसे बाहर निकला और उस एकके सिवा और सव रत्नोंमेंसे राजाके करका भाग पञ्चकुलोंको देकर पूर्व-दिशाके अलङ्कार-स्वरूप श्रीमत्पत्तन नामक नगरमें जा, वह रत्न बेंच, उसका किराना माल ख़रीद, फिर अपने नगरकी ओर चला। रास्तेमें एक बड़ा भारी जङ्गल मिला। उसमें दावाग्नि धधक रही थी, इसलिये उसका सारा किराना जलकर खाक हो गया। फिर वह अ-. को देख, उन्हें प्रणाम कर वह उनके पास बैठ रहा। परिव्राजकने उसे मधुर वचनोंसे सन्तुष्ट करते हुए पूछा,- "हे वत्स! तुम कहाँसे आ रहे हो ? कहाँ जाओगे ? और किस कारण तुम दुनियाँमें अकेले भटकते फिरते हो?' यह सुन, सुलसने कहा,-" मैं अमरपुरका रहने वाला बनियाँ हूँ और धनके लिये इधर-उधरकी खाक छानता फिरता'. हूँ।" यह सुन, परिव्राजकने कहा, "बेटा! तुम कुछ दिन मेरे पास रहो, मैं तुम्हें धनेश्वर बना दूंगा / " यह सुन, सुलसने कहा, 'आपकी यह मेरे ऊपर बड़ी भारी दया है !" और उन्हींके पास रहने लगा।परि- : ने उसे किसीके घर भोजन करनेके लिये भेजा। वह वहाँसे खाकर EAR मैंन और परिव्राजकसे पूछने लगा,-''पूज्यवर ! आप किस तर किया पट्य बनायेंगे ? " परिव्राजकने कहा,-बेटा सुनो / मेरे पापा कल्प मौजूद है। उसके रसकी एक बूंद टपका देनेसे बहुतेरा लोहा सोना जाता है। वही चीज़ मैं तुम्हें दूंगा। . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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