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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र / "स्वस्तिश्री जिनेश्वरोंको नमस्कार कर, सुलस, अपनी प्रियाको इस पत्र द्वारा आनन्द देता हुआ उत्कण्ठापूर्वक यह बात बतला देना चाहता है, कि वह आज वेश्याके घरसे बाहर हो गया। रास्तेमें अपने माबापके मरनेका हाल सुन, मैं निर्धन लजाके मारे तुम्हारे पास नहीं आया; पर अबके देशान्तरको जा, मनोवाञ्छित धन उपार्जन कर मैं थोड़े दिनों बाद फिर आऊँगा। तुम अपने मनमें इस बातका ज़रा भी खेद न करना।" इस प्रकार पत्र लिख, उसने उन अक्षरोंपर कोय. लेकी बुकनी छिड़क, उस पत्रको मोड़ा ही था, कि दैवयोगसे उसी समय उसकी स्त्रीकी दासी वहाँ आ पहुँची। उसीके हाथमें वह पत्र देकर वह परदेश चला गया / - क्रमशः चलता हुआ सुलस एक नगरके पास आ पहुँचा। वहाँ एक पुराने उद्यानमें पलाश वृक्षका अङ्कर देखकर सोचने लगा,--"दूधवाले वृक्षोंके अङ्करके नीचे ज़रूर ही कुछ-न-कुछ होता है। बिल्व और पलाशके वृक्षके नीचे थोडा या बहुत धन अवश्य ही होता है।" ऐसा विचार कर, उसने देखा, तो वृक्षके अङ्कर छोटे-छोटे नज़र आथे, इसलिये उसने सोचा, कि यहाँ थोड़ा द्रव्य है। साथही उसके दूधका रंग सुनहरा था, इसलिये उसने यह भी जान लिया, कि इसके नीचे सोना है। शास्त्रके आधार पर ऐसा विचार कर, वह “ॐ नमो धरणेन्द्राय, ॐ नमो धनदाय” आदि मन्त्रों का उच्चारण कर उस जगहकी ज़मीन खोदने लगा। उसमेंसे हज़ार मुहरोंके बराबर धन निकला। उस धनको अपने वस्त्रमें छिपाये हुए वह नगरमें आया और बाज़ारमें पहुँच कर एक बनियेकी दूकानपर बैठ गया। उस समय वह बनियाँ गाहकोंके मारे बेतरह परेशान था, यह देख कर सुलसने भी उसकी थोड़ी बहुत मदद कर दी। इतनी ही देरमें सुलसकी व्यापार-सम्बन्धित चतुराई देख, उस दूकानका मालिक बड़ा खुश हुआ और सोचने लगी, "ओह ! यह सजन कैसे होशियार मालूम होते हैं ! आज इनकी मददसे मुझे बड़ा लाभ हुआ। यह कोई मामूली आदमी नहीं मालूम पड़ते।। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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