________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। उसे पहचान कर पुष्पदेवसे पूछा, "हे व्यवहारी! यह पक्षी मेरे पुरोहितके समान दिखाई देता है।" उसने कहा,-"महाराज! यही समझ लीजिये, कि वही है।” राजाने फिर पूछा,-"तुमने इसकी ऐसी दुर्गति क्यों कर रखी है ?" इसपर उसने राजाको उसका सारा कच्चा चिट्ठा कह सुनाया। यह सुन, क्रोधित होकर राजाने अपने सिपाहियोंको हुक्म दिया, कि इस दुष्टकर्मा और परस्त्रीगामी अधम ब्राह्मणको मार डालो। राजाकी यह आज्ञा सुन, उन सबने पुरोहितको गधेपर चढ़ा, बड़ी फ़ज़ीहतके साथ उसे सारे नगर में घुमाया और वध-स्थानमें ले जाकर मार डाला। वह मरनेपर घोर नरकमें गया। वहाँ उसे अग्निसे तपते हुए पुतलेका.. आलिंगन करना पड़ा और इसी तरहके और भी अनेक प्रकारके दुःख उठाने पड़े। वहाँसे निकलने पर भी वह अनन्तकाल तक इस संसारमें : भ्रमण करता रहेगा। .. करालपिंगल-कथा समाप्त / .. इसके बाद स्वामीने फिर कहा,-“पाँचवाँ परिग्रह प्रमाण नामक अणुव्रत सचित्त, अचित्त और मिश्रके भेदसे तीन तरहका है और इसके नौ भेद भी कहे जाते हैं -जैसे, धन, धान्य, क्षेत्र, गृह, चाँदी, तांबापीतल आदि, सुवर्ण, द्विपद और चतुष्पद, इन नवों परिग्रहोंका प्रमाण करना। जो पुरुष इन नवों परिग्रहोंका प्रमाण नहीं करता, वह सुलस श्रावककी भाँति दुःख पाता है। यह सुन, चक्रायुध राजाने कहा, "हे भगवन् ! वह सुलस कौन था ? कृपाकर उसकी कथा कह सुनाइये।" . तब प्रभुने कहा, "हे राजन् ! सुनो- .... .:... ERECCCCC09999. . करून a सुलसकी कथा Converternment ... EEEEEED S ___इसी भरतक्षेत्रमें अमरपुर नामका नगर है। उसमें छत्रको ही दण्ड. लगता था, केशको ही बन्धन प्राप्त होता था, खेलमें ही मार शब्दकी P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust