SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 352
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्ठ प्रस्ताव / 327 कदाचित् तुम किसी ऐसी स्त्रीके साथ बलात्कार क्रीड़ा करोगे, जो तुम्हारी इच्छा नहीं करती हो तो, मैं तुम्हें वही दण्ड दूंगा, जो परदार-निषेवन करनेवालों को दिया जाता है / " पुरोहितने राजाकी यह आज्ञा स्त्रीकारकर ली। इसके बाद वह पुरोहित बेरोक-टोक स्वच्छन्द भावसे परायो स्त्रियोंके फ़िराक़में सारे नगरका चक्कर लगाने लगा। योंही घूमतेफिरते उस कामान्धने एक दिन पुष्पदेवकी स्त्री पद्मश्रीको देखा। उसे देखते ही वह प्रेमान्ध होकर उससे मिलनेका उपाय सोचने लगा। उसने सोचा,-"कैसे पुष्पदेवकी यह पत्नी मेरे वशमें आयेगी ?" इसी सोचविचारमें पड़े हुए उसने एक दिन पुष्पदेवकी स्त्रीकी दासी विद्यु लतासे कहा,--“हे भद्रे! तू ऐसी कोई तरकीब लड़ा दे, जिससे तेरी स्वामिनी मेरे ऊपर आशिक हो जाये।" यह सुन, उसने एक दिन अपनो स्वामिनीसे पुरोहितकी बात कही ; पर उस शीलवतीने उसकी बात नहीं मानी। दासीने यह बात जाकर पुरोहितसे कही, कि मेरी स्वामिनी तुम्हारी बात माननेवाली नहीं है। यह सुनकर उस दुरात्माने एक दिन स्वयंही अवसर पाकर पद्मश्रीसे सम्भोग करनेकी प्रार्थना की। सुनतेही वह बोली,--“खबरदार, ऐसी बात फिर कभी न कहना, नहीं तो कहीं तुम्हारे मित्रको इसकी ख़बर पड़ जायेगी।" यह सुन, पुरोहितने अनुमान किया, कि यह दिलसे तो मेरे ऊपर ज़रूर ही आशिक है। इसके बाद उसने फिर मुस्करा कर कहा,--“हे भद्रे ! तुम ऐसा कोई उपाय करो, जिससे तुम्हारे पति परदेश चले जायें।" उसकी यह बात सुन, उसने यह सारा हाल अपने स्वामीसे जाकर कह दिया। पुष्पदेवने बात सुनकर मनमें रखली-किसीपर प्रकट नहीं की ; पर उसने मन-ही-मन सोचा, कि यह पुरोहित क्या करता है, इसे देखना चाहिये। - इसके बाद पुरोहितने अपनी विद्याके प्रभावसे राजाके सिरमें बड़ी - भयानक पीड़ा उत्पन्न कर दी। उस समय सिरके दर्दसे छटपटाते हुए . राजाने पुरोहितको बुलवाकर कहा,-"पुरोहितजी ! इस सिर दर्दसे तो मेरे प्राण आजही निकले जा रहे हैं, इसलिये तुम कुछ टोना-टटका, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy