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________________ 317 __ ... षष्ठ प्रस्ताव।। प्रातःकाल राजा और नगर-निवासियोंके सामने फूल और चन्दन लेकर . उस वट-वृक्षकी पूजा करते हुए उसने कहा, "हे वट-वृक्ष! तुम सच-सच बतलाओ, कि वह धन किसने लिया है ! इस विवादका निर्णय तुम्हारे ही ऊपर निर्भर है, इसलिये सच क्तलाओ ; क्योंकि-. . 'सत्येन धार्यते पृथ्वी, सत्येन तपते रविः / ... सत्येन वायवो वान्ति, सर्व सत्ये प्रतिष्ठितम् // 1 // ' . ___ अर्थात्—'सत्यसे ही पृथ्वी टिकी हुई है, सत्यसे ही सूर्य प्रकाश फैलाते हैं, सत्यके ही प्रतापसे हवा चलती है। सब कुछ सत्यसे ही ठहरा हुआ है।' . उसके ऐसा कहने पर उस वट-वृक्षके कोटरमें बैठा हुआ भद्रसेठ बोला,"हे भाइयो! सुनो-सुबुद्धिने ही लोभके वशमें आकर सब धन ले लिया है।”. यह सुन कर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ। इसके बाद राजाने सुबुद्धिसे कहा,--"रे सुबुद्धि ! तू अपराधी है। तूही धन चुरा ले गया है। जा, शीघ्र इसे वापिस कर दे।" राजाकी यह बात सुन, सुबुद्धिने अपने मनमें विचार किया, –'वृक्ष तो अचेतन है, इसलिये यह हरगिज़ बोल नहीं सकता। हो न हो, इसमें भी दुर्घ द्धिकी कोई चालबाज़ी है। मालूम होता है, कि इसीने किसी आदमीको इस वृक्षके कोटरमें सिखला-पढ़ाकर रख छोड़ा है, नहीं तो वृक्षसे यह मनुष्यकी सी बात कैसे निकल सकती है ?" ऐसा ही विचार करके उसने राजासे कहा,-"महाराज ! मैं धन तो ज़रूर वापिस करूँगा ; पर मेरी कुछ अर्ज भी सुन लीजिये, तो बड़ी दया हो।" राजाने कहा,--"तो फिर कहता क्यों नहीं ? जो कुछ कहना हो, जल्द कह डाल / " सुबुद्धिने कहा,-"महाराज! मैंने लोभान्ध होकर मित्रको भी धोखा दिया और धन ले लिया; परन्तु मैंने वह धन इसी वटवृक्षके अन्दर रख छोड़ा था। इसके बाद जब मैं फिर उसे लेने आया, तब एक भयानक सर्प फन फैलाये नज़र आया। उसे देखकर मैंने सोचा, कि इस धनपर तो किसी देवताका पहरा मालूम P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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