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________________ षष्ठ प्रस्ताव / 315 दिखाई दिया। उसे देखकर उसने दुर्वृद्धिको बुलाया। दोनोंने उस खज़ानेको वहाँसे निकाला, तो उसमें एक हज़ार सोनेकी मुहरें मिलीं। इससे हर्षित होकर वे दोनों धन लिये हुए अपने नगरमें आये / नगरके पास पहुँचकर दुर्बुद्धिने सुबुद्धिसे कहा, "हे मित्र ! यदि हम लोग इस धनमेंसे आधा-आधा बाँट लेंगे, तो लोग हम पर तरह-तरहके सन्देह करेंगे, बात बातमें हमसे मांगा करेंगे और हमें गड़ा हुआ धन मिला है, यह सुनकर राजा भी इसे छीन ले सकता है, फिर तो हम दरिद्रके दरिद्रही बने रह जायेंगे। इसलिये यदि तुम्हारी राय हो, तो हम लोग इसमेंसे सौ-सौ मुहरें ले लें और बाकीका धन यहीं इसी बड़के पेड़के नीचे ज़मीनमें गाड़ दें।” यह सुन, सुबुद्धिने उसकी बात मान ली और रातके समय उस धनको वहाँ गाड़कर दोनों सवेरे हीखुशी-खुशी अपने घर आये। - कुछ ही दिनोंमें दुर्बुद्धिने अपनी सौ मुहरें कुमार्गमें व्यय कर दी और वह फिर खजानेमेसे सौ-सौ मुहरें निकाल लाया। कुछ दिन बाद दुर्बुद्धिने सोचा,-"मैं इस सुबुद्धिको धता बताकर सारा धन आपही ले लूँ, तो ठीक है / " ऐसा विचार कर, वह रातके समय वहाँ गया और सारा धन निकाल कर अपने घर ले आया। सच है, द्रव्यके लोभी मनुष्य अपने बापकोभी धोखा दे देते हैं, फिर औरोंका क्या कहना हैं ? इसके बाद प्रातःकाल दुर्घ द्धिने सुबुद्धिसे कहा, "हे मित्र ? अपने गड़े हुए धनमेंसे बाकी निकाल कर ले आना और बाँट लेना चाहिये।" सुबुद्धिने भी हामी भर दी और वे दोनों वहाँ जाकर वहाँकी भमि खोदने लगे। सब खोद डालनेपर ज़मीन बिलकुल पोली निकली-खज़ाना एक दम गायब था। बस, उस कपटी दुर्बुद्धिने माया फैलायी और कहा, _ “हा! न जाने किस पापीने हमें इस तरह छका मारा ! यह कहता हुआ वह पत्थरसे सिर और छाती कूटने और सुबुद्धिसे कहने लगा,"हे सुबुद्धि मालूम पड़ता है, कि यह धन तुम्हीं ले गये हो, क्योंकि हम दोनोंके सिवा किसी तीसरेको यह बात मालूम न थी। .. यह सुन, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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