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________________ षष्ठ प्रस्ताव / 313 भी कर देता, तो भी उसे कोई राजाके डरके मारे कड़ी बातें भी नहीं कहता था। . एक दिन मम्मण बाज़ारमें आकर घूमने लगा। इतनेमें पूर्व भवके वरके कारण मम्मण उस मृग पर बेतरह नाराज़ हुआ। उसने अपने . . बापसे आकर कहा,-"पिताजी ! आप इस मृगको मार डालिये-इसने मेरा बड़ा नुकसान किया है।" यह सुन, उसके पिताने कहा,-"हे पुत्र ! वणकोंके कुलका यह आचार है, कि किसी जीवकी हिंसा न करे / तिसपर यह मृग तो राजाको बड़ा ही प्यारा है, इसलिये इसे तो तुम्हें हरगिज़ नहीं मारना चाहिये। ऐसा कहकर उसके पिताने उसे रोका / तो भी उसने एक दिन मौका पाकर क्रोधके वश होकर उसे मार ही डाला। मम्मणको यह पाप करते हुए उसके बापने भी देखा और दुर खड़े तलारक्षकने भी देख लिया / तलारक्षकने जाकर यह हाल राजाको कह सुनाया, राजाने उससे पूछा,-“हे यमदण्ड ! तुम्हारा इस मामले में कोई गवाह भी है ?" उसने कहा,- उसीका वाप मेरा गवाह है। यह सुन, राजाने सेठको बुलाकर पूछा, उसने सच-सच बयान कर दिया। उसकी इस सच्चाई को देखकर राजाने उसकी बड़ी ख़ातिर की। इसके बाद राजाने यमपाशको आज्ञा दी, कि मम्मणको मार डालो। तब यमपाशने राजासे कहा,–“हे देव ! मैं जीवहिंसा नहीं करता।” यह सुन, राजाने उससे पूछा,–“हे तलारक्षक ! तुम जातिके चण्डाल होकर भी क्यों जीवहिंसा नहीं करते ?" इसके जवाबमें उसने कहा,-“हे राजन् ! सुनो. “हस्तिशीर्ष नामक नगरमें देवदन्त नामक एक वणिक् पुत्र रहता था। उसने एक बार श्री अनन्त नामक तीर्थङ्करसे धर्मदेशना श्रवणकर, वैराग्यको प्राप्त हो, दीक्षा ग्रहण कर ली। देवदन्त मुनिको तप करनेसे अनेक लब्धियां प्राप्त हुई। कुछ दिन बाद वे गीतार्थ मुनि अकेले विहार करते हुए इस नगरीमें आये और स्मशानके पास कायोत्सर्ग करके निश्चय भावसे टिक रहे / उसी समय मेरा पुत्र अतिमुक्तक, जो उपसर्गकी Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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