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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। लगे हुए थे, मैं उन्हीं की आज्ञासे दूर चला गया था, इसीलिये लौटकर उन्हें ढूंढ़ रहा हूँ / हे भद्र ! मैं तुमसे पूछता हूँ, कि क्या वह स्त्री उनके साथही उनके घर चली गयी ? " यह सुन, कुमारने कहा, 'वह तो .. न जाने कहाँ चली गयी। " यही जवाब दे, उस आदमीको विदाकर, उन्होंने अपने मनमें सोचा,- "निर्लज स्त्रियाँ उपकार या सरलताके लिहाज़से वशमें नहीं आतीं। इनको कुल, शोल और मर्यादाका कुछ खयाल नहीं होता। जहाँ तक इन्हें एकान्त नहीं मिलता, समय नहीं मिलता अथवा चाहनेवाला पुरुष नहीं मिलता, वहीं तक ये सती बनी रहतो है / नारदकी यह बात बहुत ही ठीक है।" यही सोचकर उन्होंने पा: सके ही एक नगरमें उसे उसके मामाके घर रख छोड़ा और उन्हीं मुनीन्द्रसे आकर दीक्षा ले, उग्र तपस्या कर, आयुष्य पूर्ण होनेपर मृत्युको प्राप्त हो, देवलोकमें जा देव हुए तथा वहाँसे च्युत होकर मनुष्यजन्म पाकर वे मोक्षपदको प्राप्त करेंगे। इधर कनकवती मामाके घरसे निकल कर गुणचन्द्र कुमारके घर चलीगयी और उसकी प्यारी बनकर रहने लगी। वहाँ उसकी सौतोंने उसे ज़हर दे दिया, जिससे वह रौद्रध्यानमें मरी और चौथे नरकमें चली गयी। उस नरकसे निकल कर वह चिरकाल तक भव-भ्रमण करती फिरेगी। गुणधर्म-कनकवती-कथा समाप्त / भगवान्ने कहा,- “हे राजा ! इसी तरह विषय नामक प्रमाद जीवोंको महा दुःख दिया करता है / फिर हे राजन् ! कषायरूपी प्रमादके विषयमें नागदत्तकी कथा प्रसिद्ध है। वह श्रीमहावीर जिनेश्वरके तीर्थ में होनेवाला है, पर मैं तुमसे उसकी कथा कहता हूँ / सुनो, XOXS$17*XOXOXOXSKEIXOX* - नागदत्तकी कथा . xoXEYSEXexsaxox&KE-SHAKoxs ... . इस जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्रमें ही वसन्तपुर नामका एक बड़ा भारी नगर है। किसी समय उसमें समुद्रदत्त और वसुदत्त नामके दो बड़े Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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