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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। minaramsemamaeeomomromanirammammmmmmmmmromeone आयी 10 तब कुपारने कहा, "तुम्ही याद कगे, इसे तुमने कहाँ गिरा दिया था ?" यह बोली, “मुझे तो याद नहीं कि यह मेरी भूलसे कहाँ गिर गयी थी ?" : कुमार ने कहा, "प्यारी ! मेरा यह मित्र पड़ा भारी निमित्तज्ञ है। इसके बलसं यह सब कुछ जान लेता है। अतएव इससे पूछो, यह सब बतला देगा, कि यह लड़ी कहाँ गिरी थी?" यह सुन, कनकंवतीने भाने स्वाम के मित्रसे ऐसा ही प्रश्न किया / इमपर उसने कहा, "मैं पोथो देवकर पतला सकूँगा।” इसके बाद क्षण भर हसी-दिल्लगीकी. बातेंकर गुण धर्म कुमार अने. मित्रके साथ यहाँसे उठ कर आने घर चले आये..। ........... : : :: ". इसके बाद दूसरे दिन रातको जय कनकरती, फिर विमानपर आरूढ़ हो उसी स्थानको जाने लगी, तर कुमार भी कौतूहलके मारे भदाय भायसे. उसके साथ साथ वहाँ चले गये। उस दिन भी विद्याधरातिको आशासे कनकरती ही न.चने लगी। उस समय छिपे हुए कुमारने किसी उपायसे उसके पैर का एक नूपुर निकाल लिया। उसकी उसे खबर नहीं पड़ी। नाच ख़तम होने पर वह उन नूपुरको ढूंढ़ने लगी ; पर पा न सको। इसके बाद वह घर चली आयी और कुमार भी उसके साथ-साथ चले आये। इसके बाद प्रातःकाल होनेगर गुणधपकुमारने वह नपुर अपने मित्रके हाथमें दे दिया ओर उसे लिसे हुए अपनी स्त्रीके महलमें आये। उसने उठकर आसन दिया, जिस पर कुमार बैठ गये। कुछ देर तक उसने कुमार शास्त्र को यति को, .. इसके बाद उसो मित्रसागरसे पूछा, "हे भद्र ! मैं कल तुमसे जो सवाल किया था उसका जवाब दो " इसपर उसने कहा, - “हे भद्रे ! मैंने अपने निमित्त ज्ञानके बलसे मालूम किया है, कि आता और. भी कोई आभूषण खो गया है.।" यह सुन, मन-ही-मन शङ्कित होकर वह .. बोली,-"वह कौनसा गहना है, यह जानते हो तो बतलाओ / " तब कुमारने कहा, "हे प्रिये ! क्या तुम्हें उसकी खबर नहीं है.११." उसने . कहा, "मैं उस पहनके खो जाने की बात तो जानतो हूँ ; पर वह कहाँ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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