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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। .. कृते प्रतिकृतं कुर्यात्, लुचिते प्रतितुंचितम् / . स्वया लुंचापिताः पक्षाः, मया मुण्डापितं शिरः॥ ... अर्थात- 'जैसे को तैसा करनाही चाहिये / जो अपने सिर के बाल नोचे, उसके भी बाल नोच * लेने चहिये। यह बात और है, कि तुमने मेरे पंख नोच लिये और मैंने तुम्हारा सिर मुंडवा दिया; पर बदला तो लिया / ' . . . * और भी कहा है, कि.. 'धुत्तह किजइ धुत्तई, बालह दिजइ आल / मित्तह किलइ. मित्तई, इम गमिज्जइ काल // 1 // ' .. अर्थात्-'धूर्त के साथ धूर्तता करनी, दोष लगाने वालेको दोष लगाना और मित्र के साथ मित्रता करनी चाहिये / मनुष्यको इसी तरह समय बिताना चाहिये / ' वत्सराजकी यह बातें सुन, राजा उसकी भक्ति और शक्तिसे बड़े प्रसन्न हुए और अपनी सारी चेष्टा विफल हो जानेसे लजित भी हुए। इसके बाद वे अपने घर जाकर विचार करने लगे,—"वत्सराजकी स्त्रियोंके साथ रमण करनेका विचार कर मैंने बड़ा पाप कमायासाथही मेरी लोक-हँसाई भी हुई। " ऐसा विचार कर उन्होंने अपनी श्रीसुन्दरी नामक कन्या वत्सराजको व्याह दी और प्रजाकी सम्मति ले, उन्हींको राज्य देकर आप तपस्वी हो गये / इसके बाद वत्सराजने राज्यका पालन करते हुए बहुतसे देश जोत, पुण्यवान् और दूढ़-परा. क्रमी होकर, महाराजको पदवी पायी। एक बार एक पुरुषने सभामें आ, राजा वत्सराजको प्रणाम कर, उनके सामने एक लिखा हुआ पर्चा रखकर निवेदन किया,- "हे महाराज मैं क्षितिप्रतिष्ठित नगरसे आया हूँ। यह पर्चा वहींके नगरनिवासियोंने भेजा है।" यह सुन, राजाने यह पर्चा हाथमें लेकर पास बैठे हुए लेख-वाचकको पढ़नेके लिये दे दिया। लेखवाचकने उसे खोल कर पढ़ा। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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