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________________ पञ्चम प्रस्ताव / / 256 किया,-" यदि तुमलोग कहो, तो मैं एक दिन राजाको भोजनके लिये निमन्त्रण देकर बुलाऊँ।" इसपर उन्होंने कहा, हे स्वामी ! राजाकों . अपने घर बुलाना ठीक नहीं है, क्योंकि कहा है,- .. .. 'नारीनदिनरेन्द्राणां, नागनीचनियोगीनाम् / / ... नखिनां च न विश्वासः कर्तव्यः शुभकांक्षिणा // .. .. . - अर्थात्---'भलाई चाहनेवाले मनुष्यको नारी, नदी, नरेन्द्र, नाग (हाथी या साँप ); नीच, नियोगी (नौकर ) और नाखूनवाले प्राणियोंका कभी विश्वास नहीं करना चाहिये / ' - ... . - "इसलिये हे नाथ ! यदि तुम्हें उन्हें भोजन करानेकी ही इच्छा हो, तो उन्हींके घर खाने-पीनेकी चीजें पहुँचवा दो।" / - यह सुन, फिर वत्सराजने कहा, "प्रियाओ! ऐसा करनेमें पूरापूरा गौरव नहीं होगा। यदि राजाको ही यहाँ बुलवाकर खिलाया जाय, तो मेरे मनको सन्तोष होगा।" . यह सुनकर वे फिर वोली,"स्वामी ! यदि तुम्हारी ऐसी ही इच्छा है, तो उन्हें भलेही अपने घर बुला लो; पर हमें उनके सामने न जाने देना। ऐसा करना, जिसमें हमें वे न देखें / " यह सुन, वत्सराजने उनकी बात स्वीकार कर ली और राजाके पास जा, उन्हें परिवार सहित भोजनके निमित्त अपने घर आनेका निमन्त्रण दे दिया। राजाने भी उनका बड़ा-चढ़ा हुआ आग्रह देख, उनका निमन्त्रण स्वीकार कर लिया। उन्हें न्यौता देकर वत्सराज अपने घर आये और अपनी प्रियतमाओंके साथ महलके ऊपरी / हिस्से में क्रीड़ा करने लगे। - इधर राजाने अपने मनमें सोचा; "ज़रा इस बातकी खबर लेनी . चाहिये, कि वत्सराजके घर कितने आदमियोंकी रसोई तैयार है। तब मैं उतनेही आदमियोंके साथ उसके घर जाऊँगा।" ऐसा विचार कर, इस बातकी जोह-टोह लेनेके लिये उन्होंने अपने प्रतिहारीको वत्सराजके घर भेजा। राजाके हुक्मसे प्रतिहारीने उनके घर जाकर देखा, तो रसोई आदिका कोई प्रबन्ध उसे नज़र नहीं आया। इसलिये उसने Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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