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________________ 256 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। कर लिया। उसपर राजाका अधिक प्रेम हो गया और तुम्हारी बहन उनके चित्तसे उतर गयी / इससे तुम्हारी बहनको बड़ा डाह हुआ और वह अज्ञान कष्ट द्वारा मृत्युको प्राप्त होकर व्यन्तर-जातिकी देवी हुई है है / उसीकी सौत बहुत दान-पुण्यकर समय पर मृत्युको प्राप्त होकर दत्त नामक सेठको पुत्री श्रीदत्ता हुई है। इन दिनों पूर्वभवके द्वेषके कारण यह व्यन्तर-देवी उस श्रीदत्ताके पहरेदारोंको मार डालती है। अबतक बहुतेरे मनुष्य मारे जा चुके हैं / इसलिये हे राजन् ! तुम अपनी. इन दोनों पुत्रियोंको उसी व्यन्तर-देवीको दे डालो / इसके वहाँ रहनेसे इनका भावी पति वत्सराज आपसे आप वहाँ जा पहुंचेगा।" वही पुरुष देवीके द्वारा होनेवाले मनुष्योंके नाशका द्वार बन्द करेगा और इन दोनों लड़कियोंके साथ शादी करेगा / " यह सब हाल सुनाकर मुनि अन्यत्र विहार करने चले गये / इसीलिये हे सत्पुरुष ! वह विद्याधर-राजा मेरे पास उन दोनों लड़कियोंको छोड़ गया है / इसके बाद वह विद्याधर राजा तपस्याकर मृत्युको प्राप्त होकर व्यन्तरेन्द्र हो गया। उसीने मुझे अश्वरूपधारी एक यक्ष-सेवक भी दिया है और सर्व-कामद नामक पर्यङ्क भी उसीका दिया हुआ है। उसीने मुझे वे दोनों महौषधियां भी दी थीं। अतएव हे भद्र ! मैं अब यह सब चीजें तुम्हें दिये डालती हूँ।" इसके बाद उन दोनों कन्याओंके साथ विवाह कर, वत्सराज वहीं रह कर उनके साथ भोग-विलास करने लगे। ____ एक दिन वत्सराजने अपनी रत्नचूला और स्वर्णचूला नामक दोनों त्रियोंको बुलाकर उनसे अपनी प्रतिज्ञाकी बात कह सुनायी। उन्होंने वह बात देवीसे कही। देवीने वह कारण जान, उनके वियोगसे दुखी होनेपर भी दोनों प्रियाओंके साथ वत्सराजको जानेकी आज्ञा देदी। तब वत्सराज, दोनों स्त्रियोंके साथ उसी पर्यङ्क पर सवार हो, आकाश-मार्गसे श्रीदताके शयन-मन्दिरमें बात-की-बातमें आ पहुंचे। उस समय प्रातः काल सोकर उठी हुई सेठ-कन्याने अपने महलके ऊपर पर्यत तथा अश्वको देख, “ऐ! यह क्या ?" कहते हुए आश्चर्यके साथ सोचा, P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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