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________________ धीशान्तिनाथ चरित्र। mmmmmmmmmamraparnar उसे देख, उसके सेवकके समान मालूम पड़नेवाले एक पुरुषसे वत्स. राजने पूछा,"हे भाई! यह कौनसा नगर है ? यहाँका राजा कौन है !" उसने कहा,-"न तो यह कोई नयर है, न यहाँका कोई राजा है। परन्तु जो कुछ है, वह सुनों,- .. .. ___"इस स्थानसे थोड़ी दूरपर भूतिलक नामका एक नगर है। उसमें वैरीसिंह नामका राजा राज्य करता है। उसमें दस नामका एक सेठ रहता है। उनकी पत्नीका नाम श्रीदेवी है। उसके गर्भसे उत्पन्न, रूप-लावण्यसे युक्त श्रीदत्ता नामकी एक पुत्री है। यह पुत्री युवावस्थाको प्राप्त हो गयी है, पर उसका शरीर भूत दोषसे ग्रस्त हो रहा है, इस लिये जो पुरुष रातको उसके पास पहरे पर रहता है, वह मर जाता है और यदि उसके पास पहरेपर कोई नहीं रहता, तो नगरके सात भादमी मरते हैं। ऐसा होनेके कारण एक दिन राजाने उस सेठको बुलाकर पूछा,-“सेठजी ! मैं तुम्हें आशा देता हूँ, कि यह नगर छोड़ कर जंग लमें चले जाओ; क्योंकि तुम्हारी लड़कीके करते हमारे नगरके लोग / मरते जाते हैं।" राजाकी यह आज्ञा पाकर, सेठ अपने परिवारके साथ यहीं चला आया और चोर वगैरहसे अपनी रक्षा करनेके लिये किले सहित यह महल बनाकर यहां रहता है। उसीने ढेर-का-ढेर धन देकर ये पहरेदार रखे हैं। ये लोग महलके चारों ओर बने हुए छोटे छोटे घरोंमें रहते हैं। इन पहरेदारी के नामसे गोलियाँ बनाकर रखी हैं। जिस दिन जिसके नामकी गोली निकलती है, उस दिन रातको वही पहरेदार सेठकी घेटीके पास रहता है और रातको मर जाता है। है पथिक ! यदि यह हाल सुनकर तुम्हें उर मालूम होता हो, तो तुम अभी यहाँसे कहीं और चले जाओ" ... - यह बातें सुन, धत्सराज सेठके पास आये। उन्हें देख, दत्त सेठमे / उन्हें आसमपर बैठाते हुए पान दिया और आदरफे साथ पूछा,-"वत्स! तुम कहाँसे आ रहे हो ?". वत्सराजने कहा,--"मैं एक कामसे उज्जयिनी-नगरीसे चला आ रहा हूँ। कुमार वत्सराज सेठेके साथ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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