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________________ vvvvvvv श्रीशान्तिनाथ चरित्र। मासीको तो उसी ओढ़नीके मुकाबलेकी अँगिया भी चाहिये / " यह सुन, वत्सराजने कहा,- "स्वामिन् ! यदि आपकी कृपा होगी, तो वह भी मिल जायेगी।" यह कह, वह नगरसे बाहर जा, उसी चन्दनके वृक्षके कोटरसे वह रत्न-जटित अंगिया निकाल लाये और राजाके हवाले करते हुए उसका भी वृत्तान्त उनसे कह दिया / राजाने अँगिया रानीको दे दी। उन्होंने हर्षित होकर उसे उसी समय पहन लिया / इसके बाद ओढ़नी और अगियाके मुकाबलेका घाघरा न देखा, रानीका चित्त बड़ा बेचैन होने लगा। शास्त्रकारोंने ठीक ही कहा है, कि ज्योंज्यों लाभ होता है, त्यों-त्यों लोभ बढ़ता जाता है।" एक दिन राजाने रानीको चेहरा उदास किये देखकर पूछा,"प्रिये ! अब तो तुम्हें मन लायफ़ अँगिया मिलही गयी, फिर क्यों मुँह उदास किये हुई हो ?" रानीने कहा,-"इसीके मुकाबिलेका घाघरा भी तो चाहिये / " यह सुन, राजाने सोचा,-"ओह ! असन्तुष्टा स्त्रियों को वस्त्रों तथा अलङ्कारोंसे कभी तृप्ति नहीं होती। कहा है, कि 'अग्निविप्रो यमो राजा, समुद्र उदरं स्त्रियः / / . अतृप्ता नैव तृप्यन्ति, याचन्ते च दिने दिने // 1 // ' . . . . | अर्थात्,--"अग्नि, ब्राह्मण, यम, राजा, समुद्र, उदर और स्त्रियाँ कदापि तृप्त नहीं होती / ये दिन-दिन नयी-नयी फर्मायशें करते ही. रहते हैं।" / स्त्रियोंका ऐसा ही स्वभाव होता है, यही सोच कर राजाने कहा,“ विवेकहीन रानी ! जो चीज़ मौजूद नहीं है, उसके लिये व्यर्थ हायहाय न करो।" यह सुन, रानोकी ज़िद और ज़ोर पकड़ गयी / उन्होंने कहा, -- "अब मुझे अभी ओढ़नी और अँगियाके मुकाबलेका. घांधरा मिलेगा, तभी मैं अन्न-जल ग्रहण करूँगी।". यह कह, रानी अपने महलमें चली गयीं / इसके बाद राजाने वत्सराजको बुलाकर कहा,--"हे सहसी तुमने तो दो उत्तम दिव्य वस्त्रलाकर बड़ाअन्धेरे कर दिया ।अब तुम ही किसी तरह अपनी मासोको राज़ी करो। बिना तुम्हारे और P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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