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________________ 242 श्रोशान्तिनाथ चरित्र। wwwwwwwwwwwwwwww.mmmmmmwwwwwwwwwwwwmare वत्सराज हाथमें खङ्ग लिये, राजाके शयन-मन्दिरके बाहर अदबसे खड़े हो रहे / . आधी. रातको राजाकी नींद टूट गयी। उसी समय उन्हें दूरसे आती हुई किसी दुखिया लीके करुण-स्वरसे रोनेकी आवाज़ , सुनाई दी। सुनते ही राजाने पहरेदारोंको पुकारा, पर वे नींदमें बेखबर पड़े हुए थे, इसलिये किसीने कुछ उत्तर नहीं दिया। वत्सराजने कहा, "हे स्वामी ! जो कुछ हुक्म हो, कहिये, मैं बजा लाऊँ।" राजाने कहा, "हे वत्सराज! क्या आज मैं तुम्हें घर जानेकी छुट्टी देना भूल गया ?" उन्होंने कहा,-"हाँ।" . तब राजाने फिर कहा,"वत्सराज!. इस समय मुझे तुमको आशा नहीं देनी चाहिये।" घत्सराजने कहा,-"स्वामी! आपकी आशाके अनुसार कार्य करने में मुझे कोई लज्जा थोड़े ही है. 1. जो कोई काम हो, कहिये, कर लाऊँ।" तब राजाने कहा,-"बेटा ! सुनो-यह जो रुलाई सुनाई दे रही है, बह किसकी है और वह क्यों रो रही है, इसे जाकर देख आओ और उससे पूछ कर मुझे ख़बर दो। साथही उस रोती हुई स्त्रीको इस तरह छाती फाड़ कर रोनेसे मना कर दो।" यह सुन, राजाकी बात स्वीकार कर, वत्सराज उसी रुलाईके शब्दकी सीध पर फिलेसे बाहर हो, नगरकं बाहर स्मशान-भूमि तक चळे गये। वहाँ एक स्थानमें उत्तम-घलों तथा अलङ्कारोंसे विभूषित एक स्त्रीको धैठे-बैठे रोते देख, उन्होंने उसके पास जाकर पूछा,- "हे मुग्धे! तुम कौन हो? इस स्मशानमें आकर क्यों रो रही हो / यदि बात छिपाने लायक न हो, तो अपने दुःखका कारण मुझसे कह सुनाओ।" इसके उत्तरमें उस स्त्रीने कहा, "भाई ! तुम जहाँसे आये हो, वहीं चले जाओ। तुमसे मेरा काम नहीं हो सकता। इसलिये तुम व्यर्थ ही क्यों मेरी चिन्तामें पड़ते हो ? - वत्सराजने कहा,-"तुम्हें दुःखी देखकर भी मैं क्योंकर यहाँसे चला जाऊँ ? क्योंकि भले आदमी पराये दुःखसे दुःखित होते हैं।" यह सुन, उस स्त्रीने कहा,-"जिसी-किसीसे अपना दुःख कहना नहीं चाहिये, क्योंकि कहा है,- . . P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradita Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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