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________________ vina पञ्चम प्रस्ताघ / 236 ऐसा विचार कर, उचित समय जान, वत्सराजने नि:शंक होकर, आदिसे अन्त तक अपनी सारी कथा राजाको कह सुनायी। उनके / पासही बैठी हुई रानी कमलश्रीने यह हाल सुनकर अकस्मात् प्रश्न किया,-"क्या धारिणी और विमला यहाँ आयी हुई हैं ?" इसपर वत्सराजने हामी भर दी। यह सुन, रानीने राजासे कहा,-"प्राणेश्वर! धारिणी और विमला मेरी बड़ी बहनोंके नाम हैं। यह लड़का मेरा बहन-बेटा है। तुम्हारी आशा हो, तो मैं अपनी बहनोंको यहाँ बुलवा लूँ।" यह सुन, राजाने कहा,-"तुम स्वयं वहाँ जाकर अपनी दोनों बहनोंको कुमारके साथ बुला लाओ; क्योंकि वे वहाँ बड़ा / दुःख पा रही होंगी।" इसके बाद राजाका हुक्म पा, रानी कमलश्री, हाथीपर सवार हो, सिरपर छत्र लगाये, बहुतसे नौकर-चाकरोंके साथ सेठके घर पहुंची। यह देख, उस सेठको बड़ा विस्मय हुआ और रानीके पास आकर तरह-तरहके विनयोपचार करने लगा। उसे इस प्रकार खुशामद करनेसे रोककर रानीने कहा,-"सेठजी! घबराओ नहीं, मैं जिम लोगोंसे मिलने आयी हूँ, उन्हींसे मुझे मिल लेने दो।" यह कह, राजप्रिया धारिणी और विमलाके पास जानेको तैयार हुई। इतनेमें वत्सराजने पहले ही वहाँ पहुँच कर धारिणी और विमलाको प्रणाम करते हुए उनसे सारा हाल कह सुनाया और निवेदन किया,"माता ! इस नगरके राजा तुम्हारे बहनोई हैं। तुम्हारी बहन रानी कमलश्री तुमसे मिलनेके लिये इस घरके आँगन तक चली आयी हैं।" यह सुनतेही उनकी मा और मासीने कहा,-"पुत्र ! हमें इस नातेदारीका पहलेसे ही पता था ; पर शर्मफे मारे हम इसे प्रकट नहीं करती थीं।" यह कह वह दोनों बड़े हर्षके साथ घरसे बाहर निकलीं और रानीके पास चलीं। रानी भी हाथीले नीचे उतरकर दोनोंसे गले-गले मिली और ऊँचे स्वरसे रोती हुई बोली,-"प्यारी बहनो! तुम्हारी ऐसी भयङ्कर अवस्था क्योंकर हुई ? इसमें विधाताका ही कोप.मालूम पड़ता है ; क्योंकि वह सत्पुरुषोंको भी दुःख देता है। कहा भी है, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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