SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चम प्रस्ताव / 235 M कपड़े उतारकर, दूसरे पहन लिये और क्षणभर विश्राम कर, अपने-अपने घर चली गयीं वत्सराजने उनकी यह सारी काररवाई और नाचनागामा उस किवाड़की सम्धसे देखा-सुना / इसके बाद जब पे चली गयीं, तय वत्सराजने उनमेंसे किसीकी सुन्दर अँगिया गिरी देवी, जिसमें सरह-तरहफे विचित्र रत्न टके हुए थे। उसे देख, उन्होंने किवाड़ खोलकर वह सुन्दर अगिया ले लो और तुरतही मन्दिरके अन्दर चले गये। __थोड़ी ही दूर आगे बढ़नेपर उन विद्याधरियोंमेंसे एक जिसका ___ माम प्रभावती था, अपनी अंगिया भूली हुई देखकर बोली,-"हे सखियो ! मेरी तो एक बड़ी कीमती अँगिया उसी मन्दिरमें छूट गयी है।" इसपर उन सबने कहा,-"प्रभावती ! तू वेगवतीको साथ लेकर वहाँ चली जा और अपनी अंगिया लेकर जल्द चली आ / यह सुन, वे दोनों जल्दीसे वहाँ आकर अंगिया ढूँढने लगीं, पर वह कहीं नज़र नहीं आयी। तब प्रभावतीने वेगवतीसे कहा,-"सखी ! इतनी ही देर में अँगिया क्या हो गयी ? यहाँ तो शायद कोई आदमी भी नहीं रहता। उसपर आधीरातका समय ! फिर कौन ले गया ?" वेगवतीने कहा,"शायद हवासे उड़कर कहीं दूर चली गयी होगी। इसलिये हमलोगोंको आलस्य छोड़कर उसकी ठीकसे तलाश करनी चाहिये। यह कह, वे दोनों विद्याधरियाँ, मन्दिरके चारों ओर दूंढ-खोज करने लगी, पर अगिया कहीं न दिखाई दी / इतने में उन्हें वृक्षपर लटकाया हुआ चन्दनकी लकड़ियोंसे भरा हुआ काँवर दिखाई पड़ा। यह देख, उन्होंने परस्पर विचार किया,-"इस मन्दिरके भीतर अवश्यही कोई आदमी बैठा हुआ है और उसीने अँगिया चुरायी है / इसलिये चलकर उसे डराना-धमकाना चाहिये, जिसमें वह मेरी अँगिया दे दे।" ऐसा विचार कर, दोनों मन्दिरके द्वारपर जाकर बोली,-"रे मनुष्य ! तू मन्दिरसे बाहर निकल और हमारी अँगिया दे दे, नहीं तो हम तेरा सिर तोड़ .. डालेंगी।" यह सुनकर भी वह वीर-शिरोमणि, क्षत्रिय होनेके कारण, P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy