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________________ पञ्चम प्रस्ताव। आ जानेके कारण उस सेठने उनसे कहा,–“बालक ऐसेही मनमौजी हुआ करते हैं !" यह सुनकर वे दोनों चुप हो रहीं। ____ अब तो वत्सराज रोज़ सवेरे उठकर उन्हीं राजकुमारोंके पास पहुँच जाते और कलाभ्यास करते / उनका खाना-पीना भी वहीं होता। एक दिन उनकी माताने उनसे पूछा,-"बेटा! तू आजकल रोज़ साँझ तक कहाँ रहता है ? कहाँ जाता है ? और क्या खाता है ?" इस बार उन्होंने कहा, "मैं वहीं जाता हूँ, जहाँ राजाके लड़के हथियार चलाना सीखते हैं। मैं भी उन्हींके साथ कलाभ्यास करता हूँ और वहीं खाता-पीता हूँ।" यह सुन, उनकी माता धारिणीने आँखोंमें आँसू भर कर कहा,-"पुत्र तू हम लोगोंकी चिन्ता क्यों नहीं करता ? बेटा! इस समय अपने घरमें इंधन भी नहीं है, इसलिये कहींसे ला दे, तो ठीक हो / माताकी यह . बात सुन, वत्सराजने कहा,-"माता ! तुम सेठके यहाँसे कुल्हाड़ी और काँवर लाकर मुझे दो, तो मैं जङ्गलमें जाकर लकड़ी काट लाऊँ।" यह सुन वह कुल्हाड़ी आदि मांग लायो। दूसरे दिन सवेरे बहुत जल्दी * उठकर वह कुल्हाड़ी आदि लिये हुए घने जङ्गलमें चले गये। वहाँ तरहतरहके वृक्षोंको देखकर उन्होंने विचार किया,-"यदि कहीं.चन्दनका पेड़ मिल जाये, तो उसकी लकड़ी बेंचकर मैं अपनी दरिद्रता दूर कर दूं और माता तथा मासीकी इच्छा पूरी करूं।" यही विचार कर वह उस जंगलमें चारों ओर घूमने लगे। घूमते-घूमते उन्होंने एक देवमन्दिर देखा, .. जिसमें एक प्रभावशाली यक्षको प्रतिमा थी। उसे प्रणाम कर वह खड़े. ही थे, कि इतनेमें दूरसे सुगन्ध आती मालूम पड़ी। तब उन्होंने सोचा,-"अवश्य ही इस वनमें कहीं चन्दनका पेड़ है।" ऐसा विचार कर वह बड़े शौकसे उस वनके चारों ओर घूम-घूमकर देखने लगे / इतनेमें उन्हें एक स्थान पर सोसे घिरा हुआ एक चन्दनका पेड़ दिखाई पड़ा। यह देख, उन्होंने बड़े साहससे उस पेड़के पास जाकर उसे हिला-हिला कर सब सोको भगा दिया / यह वन एक यक्षका था, इसलिये पहले . कोई यहाँ चन्दनका पेड़ नहीं काटता था / परन्तु चूं कि वल्लराज बड़े PRAc. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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