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________________ पञ्चेम प्रस्ताव। . 227 यदि कष्ट भी आ पड़े, तो वह सूरराजकी तरह सुखका ही कारण हो जाता है।" - जब प्रभुने ऐसी बात कही, तब गणधरने श्रीजिनेश्वरको नमस्कार कर विनयपूर्वक कहा, "हे स्वामी ! यह सूरराज कौन था, जो धर्म-कार्यमें प्रमाद नहीं करता था।" इस पर भगवान्ने कहा,-हे भद्र ! यदि तुम्हें उसका चरित्र श्रवण करनेकी इच्छा हो, तो सावधान होकर सुनो। / सूरराज (वत्सराज) की कथा इसी जम्यूद्वीपमें, भरतक्षेत्रके अन्तर्गत, क्षितिप्रतिष्ठित नामका एक नगर है / उसमें प्रजा-पालनमें तत्पर और गुण-रत्नोंके मन्दिर-स्वरूप वीरसिंह नामके राजा राज्य करते थे। इन राजाके शीलरूपी अलंका. को धारण करनेवाली और इनके बायें अङ्गकी अधिकारिणी धारिणी मामकी स्त्री थी। एक दिन रानी, स्वप्नमें अपने आगे-आगे देवेन्द्र को जाते देख, जग पड़ी। प्रातः काल रानीने इस स्वप्नकी बात अपने स्वामीसे कही। राजाने अपने मन में इस स्वप्नका विचार कर कहा, "इस स्वप्न के प्रभाषसे तुम्हें पुत्र होगा; परन्तु चूँ कि तुमने देवेंद्रको जाते. देखा है, इसलिये वह पुत्र कुछ चंचल चित्तवाला होगा। इसके बाद क्रमसे गर्भका समय पूरा होने पर रानीके एक पुत्र उत्पन्न हुआ। माता * पिताने स्वप्नके अनुसारही उसका नाम 'देवराज' रखा। यह कुमार, धीरे-धीरे बड़ा हो चला। इसी समय रामीने एक दिन फिर स्वप्न में शंखके समान उज्ज्वल, पुष्ट शरीरवाला और अपनी गोदमें बैठा हुआ एक वृषभ देखा। सवेरे ही उठकर रानीने इसका हाल राजाको सुनाया। रामीने कहा, "हे स्वामी ! आज मैंने सुख-सेज पर सोते सोते सपनेमें केलास पर्वतकी तरह उज्ज्वल एक वृषभ देखा है। भला इसस्वप्न P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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